उपहार सिनेमा कांडः: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुशील अंसल को वेब सीरीज 'ट्रायल बाय फायर' के खिलाफ केस वापस लेने की दी अनुमति

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपहार सिनेमा अग्निकांड मामले में दोषी करार दिए गए रियल एस्टेट कारोबारी सुशील अंसल को वेब सीरीज ‘ट्रायल बाय फायर’ की रिलीज पर रोक लगाने वाली उसकी याचिका वापस लेने की सोमवार को अनुमति दे दी। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

दिल्ली उच्च न्यायालय
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नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपहार सिनेमा अग्निकांड मामले में दोषी करार दिए गए रियल एस्टेट कारोबारी सुशील अंसल को वेब सीरीज ‘ट्रायल बाय फायर’ की रिलीज पर रोक लगाने वाली उसकी याचिका वापस लेने की सोमवार को अनुमति दे दी।

इस त्रासदी पर आधारित सीरीज 13 जनवरी से ओटीटी (ओवर द टॉप) मंच नेटफ्लिक्स पर प्रसारित की गई। उच्च न्यायालय ने इसकी रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और अंतरिम रोक का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज कर दी थी।

उपहार सिनेमा में 13 जून 1997 को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ प्रदर्शित की जा रही थी जब भीषण आग लगने की वजह से 59 लोगों की मौत हो गयी थी।

न्यायमर्ति यशवंत वर्मा के समक्ष मामले को लाया गया, जिन्हें अंसल के वकील ने बताया कि उनका मुवक्किल याचिका वापस लेना चाहता है।

इसके बाद उच्च न्यायालय ने इसकी अनुमति दे दी।

वेब सीरीज की रिलीज पर रोक लगाने की अंतरिम याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने 12 जनवरी को कहा था कि इस अकल्पनीय त्रासदी ने ‘‘देश का सिर शर्म से झुका दिया था।’’

अंसल ने अदालत से वेब सीरीज की रिलीज पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा था कि इसके ‘टीज़र’ को चार दिन में 15 लाख लोग देख चुके हैं जो इसके प्रभाव को दर्शाता है। अंसल ने इससे उसकी मानहानि होने का दावा भी किया था।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार अंसल (83) ने 2016 में आई किताब ‘ट्रायल बाय फायर-द ट्रैजिक टेल ऑफ द उपहार ट्रेजेडी’ के वितरण और प्रकाशन पर भी रोक लगाने की मांग की थी।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 2017 में उपहार अग्निकांड मामले में अंतिम फैसला सुनाते हुए सुशील अंसल और उसके भाई गोपाल अंसल (74) को 30-30 करोड़ रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया था।

शीर्ष अदालत ने सुशील अंसल के जेल में बिताये समय पर विचार करते हुए उन्हें रिहा कर दिया था।

इसके बाद अंसल बंधुओं और दो अन्य को उपहार सिनेमा अग्निकांड के मुकदमे से जुड़े साक्ष्यों से छेड़छाड़ का दोषी ठहराया गया था।










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