पुराने राजधानी परिसर क्षेत्र का जीर्णोद्धार कराएगी सरकार
त्रिपुरा सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अगरतला के पास पुराने राजधानी परिसर क्षेत्र का जीर्णोद्धार करने का फैसला किया है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
अगरतला: त्रिपुरा सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अगरतला के पास पुराने राजधानी परिसर क्षेत्र का जीर्णोद्धार करने का फैसला किया है। यह जानकारी अधिकारियों ने दी।
अधिकारियों ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि पुराना राजधानी परिसर राज्य की राजधानी से लगभग आठ किलोमीटर दूर पुरातन अगरतला में पुरान हवेली क्षेत्र में स्थित है जिसमें एक महल, चतुर्दश मंदिर, एक संग्रहालय और अन्य संरचनाएं शामिल हैं। उन्होंने बताया कि इसका जीर्णोद्धार किया जाएगा और पूरे क्षेत्र का 20 करोड़ रुपये की परियोजना के तहत सौन्दर्यीकरण किया जाएगा।
महाराजा कृष्ण माणिक्य देबबर्मा ने 1760 में अपनी राजधानी को उदयपुर से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थानांतरित करने के बाद परिसर और मंदिर का निर्माण किया था। माणिक्य राजाओं ने 1838 में राजधानी को पुरान हवेली से अगरतला स्थानांतरित किया था।
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राज्य के पर्यटन मंत्री सुशांत चौधरी ने कहा, ‘‘जून और जुलाई के महीनों में आयोजित सात दिवसीय 'खार्ची मेले' के दौरान मंदिर में त्रिपुरा और पड़ोसी असम तथा बांग्लादेश से श्रद्धालु आते हैं। राज्य सरकार ऐतिहासिक स्थल के जीर्णोद्धार के लिए एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से ऋण हासिल करेगी।’’
स्थानीय विधायक रतन चक्रवर्ती और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मंत्री ने हाल में पुराने राजधानी परिसर का दौरा किया और प्रस्तावित जीर्णोद्धार पर एक बैठक की।
पर्यटन विभाग के कार्यकारी अभियंता उत्तम कुमार पाल ने कहा कि आदिवासी संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले संग्रहालय और पास में एक उद्यान का जीर्णोद्धार किया जाएगा।
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पाल ने कहा, 'पुराने राजधानी परिसर में एक स्विमिंग पूल, एक ओपन-एयर थिएटर और एक गेस्ट हाउस का भी जीर्णोद्धार किया जाएगा। परिसर में मंदिर के पुजारियों के घर जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं और उनका भी जीर्णोद्धार किया जाएगा।'
चतुर्दश मंदिर में पूजे जाने वाले चौदह देवताओं में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, कार्तिकेय, सरस्वती, गणेश, समुद्र, पृथ्वी, अग्नि, गंगा, हिमाद्री और कामदेव शामिल हैं।
इतिहासकार पन्ना लाल राय ने कहा, ‘‘त्रिपुरा को चौदह देवी-देवताओं की भूमि भी कहा जाता है। इन देवताओं का राज्य के लोगों पर अत्यधिक प्रभाव है। जब महाराजा कृष्ण माणिक्य देबबर्मा ने अपनी राजधानी उदयपुर से स्थानांतरित की, तो वे इन देवताओं को भी अपने साथ ले आए और उन्हें चतुर्दशा मंदिर में पुनः स्थापित किया।’’