कथकली के लिए मशहूर इस गांव का नाम बदलकर ‘अयिरूर कथकली ग्रामम’ हुआ, पढ़ें पूरी रिपोर्ट
दक्षिणी केरल के इस जिले में पम्पा नदी के तट पर स्थित एक छोटे से गांव के कथकली कलाकार कई दशकों से न केवल हिंदू पुराणों की कहानियां, बल्कि ‘बाइबल’ की प्रस्तुति भी कर रहे हैं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
पतनमतिट्टा: दक्षिणी केरल के इस जिले में पम्पा नदी के तट पर स्थित एक छोटे से गांव के कथकली कलाकार कई दशकों से न केवल हिंदू पुराणों की कहानियां, बल्कि ‘बाइबल’ की प्रस्तुति भी कर रहे हैं।
पतनमतिट्टा के अयरूर गांव का नाम 12 वर्षों से अधिक समय के प्रयास के बाद अब भारतीय मानचित्र पर ‘अयिरूर कथकली ग्रामम’ के तौर पर दिख रहा है, जो इस गांव में कथकली की लोकप्रियता को दर्शाता है।
कथकली नृत्य की शुरुआत 300 से भी अधिक वर्ष पूर्व केरल में हुई थी। इसे हाथ से विभिन्न मुद्राएं बनाकर और आंखों के भावों के जरिए प्रस्तुत किया जाता है। इसे प्रस्तुत करने के लिए कलाकार रंगीन पोशाक पहनते हैं और चेहरे पर काफी श्रृंगार करते हैं। कथकली नृत्य के जरिए अतीत की महान कहानियों, अधिकतर भारतीय महाकाव्यों को प्रस्तुत किया जाता है।
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गांव के एक निवासी विमल राज ने बताया कि अयिरूर में न केवल हिंदू महाकाव्य, बल्कि ‘इब्राहीम के बलिदान’, ‘द प्रोडिगल सन’ और ‘मैरी मैग्डलीन’ जैसी बाइबिल की कहानियां भी प्रदर्शित की जाती हैं और ईसाई समुदाय के बीच भी यह काफी लोकप्रिय है।
कथकली कलाकारों के परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य राज खुद कथकली कलाकार नहीं हैं, लेकिन नृत्य शैली के प्रति उनके लगाव ने उन्हें 1995 में अपने कुछ दोस्तों के साथ एक जिला कथकली क्लब शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार पंचायत अध्यक्ष अंबिली प्रभाकरन नायर ने बताया कि इस क्लब के अनुरोध पर ग्राम पंचायत ने 2010 में गांव का नाम बदलकर ‘अयिरूर कथकली ग्रामम’ करने का प्रस्ताव पारित किया था।
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क्लब के सचिव राज ने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया को पूरा होने में 12 साल लग गए। राज ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘नाम में बदलाव करना आसान नहीं था। यह काफी लंबी प्रक्रिया थी क्योंकि इसके लिए आपको राज्य और केंद्र सरकारों की मंजूरी की जरूरत थी। यह पता लगाने के लिए खुफिया अधिकारियों द्वारा निरीक्षण भी किया जाता है कि नाम बदलने से कोई सांप्रदायिक समस्या तो खड़ी नहीं हो जाएगी।’’
उन्होंने कहा कि इस बारे में कोई चिंता नहीं थी क्योंकि किसी ने नाम बदलने पर आपत्ति नहीं जतायी थी। वहीं क्लब के संचालन में यहां के ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा योगदान है।