रतिकाम महोत्सव प्रेम का उत्सव शुरूः बसंत ऋतु के कण-कण में समाहित है कामदेव

डीएन ब्यूरो

बसंत पंचमी से रतिकाम महोत्सव शुरू हो गया है। बसंत के इस मौसम में ग्रहों में विद्यमान शुक्र का प्रभाव रहता है। रतिकाम महोत्सव रंगोत्सव तक चलता है। इस अवसर पर भगवान कामदेव व भगवती रति की पूजा फलदाई होता है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ पर बसंत ऋतु में रतिकाम महोत्सव का महत्व

कामदेव (फ़ाइल फोटो )
कामदेव (फ़ाइल फोटो )


कामदेव: बसंत पंचमी से रंगोत्सव तक का समय रतिकाम महोत्सव कहा जाता है। बसंत कामदेव के मित्र है।कामदेव ही सृजन को संभव बनाने वाले देवता है। वह प्रकृति के कण-कण में समाहित है। आचार्य पंडित दयाशंकर शुक्ल के अनुसार सूर्य के कुम्भ राशि में रहने के दौरान ही रति काम महोत्सव प्रारंभ हो जाता है। बसंत के इस मौसम पर ग्रहों में सर्वाधिक विद्वान शुक्र का प्रभाव रहता है। शुक्र, काम और सौंदर्य के कारक है। रतिकाम महोत्सव की यह अवधि कामोद्वीपक होती है। 

स्वर विहीन होती है कामदेव के फुलों का धनुष 
रति दक्ष प्रजापति की पुत्री और कामदेव की पत्नी है। शास्त्रों में रति को ब्राह्मांड की सबसे सुन्दर स्त्री माना जाता है। रति के पति कामदेव को प्रेम का देवता माना गया है। कामदेव का धनुष फूलों का है। इस धनुष की कमान स्वर विहीन होती हे। यानि कामदेव जब अपनी कमान से तीन छोड़ते हैं, तो उसकी आवाज नही होती। इस तीर के तीन दिशाओ में तीन कोने होते हैं, जो क्रमशः तीनों लोको के प्रतीक माने गए हैं। 

कामदेव के तीर से संचालित होता है तीन लोक
इसमें एक कोना ब्रह्मा जी के अधीन है, जो सृष्टि के निर्माण का प्रतीक है। दूसरा कोना विष्णु जी के अधीन है, जो ओंकार या उदर पूर्ति पेट भरने के लिए होता है। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। कामदेव के तीर का तीसरा कोना शिव के अधीन होता है, जो मोक्ष का प्रतीक है। कामदेव का माथा धनुष के सामान है। यह दिशानिर्देश देता है। हाथी को कामदेव का वाहन माना गया है। अनंग त्रयोदशी के दिन कामदेव और रति की प्रतिमा बनाकर फूलों को सजाकर पांच वाण हाथ में लेकर पूजा करने से हर मानोकामना पूर्ण होती है।










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