जाली दस्तावेज़ जमा कराने वाले कर्मचारियों के साथ कोई हमदर्दी नहीं दिखाई जा सकती
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपने नियोक्ता को जाली दस्तावेज़ सौंपने के दोषी कर्मचारियों के साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए और ऐसे लोगों के साथ कोई हमदर्दी और दया नहीं दिखाई जा सकती है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपने नियोक्ता को जाली दस्तावेज़ सौंपने के दोषी कर्मचारियों के साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए और ऐसे लोगों के साथ कोई हमदर्दी और दया नहीं दिखाई जा सकती है।
उच्च न्यायालय ने एक महिला को सेवा से बर्खास्त करने के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की है।
अदालत एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे अपने पति की मौत के बाद यहां बिहार भवन में अनुकंपा के आधार पर चतुर्थ श्रेणी की नौकरी दी गई थी। उन्हें 2014 में जाली दस्तावेज़ जमा कराने को लेकर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। महिला ने 2014 के इस आदेश को रद्द करने का आग्रह किया था।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, बिहार भवन में 2009 में शराब के नशे में हंगामा करने और अशांति पैदा करने के आरोप में महिला को ‘कारण बताओ नोटिस जारी’ किया गया था।
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बाद में महिला को निलंबित कर दिया गया और जांच के दौरान सामने आया कि उन्होंने अपनी शैक्षिक योग्यता के समर्थन में आठवीं कक्षा पास होने का जो प्रमाण पत्र जमा कराया था, वह जाली था और उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जांच अधिकारी की रिपोर्ट है कि याची यह साबित नहीं कर पाई कि उनकी ओर से जमा कराया गया आठवीं कक्षा पास का प्रमाण पत्र वास्तविक है।
अदालत ने कहा कि तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता ने अनुकंपा पर नौकरी पाने के दौरान अपनी शैक्षिक योग्यता के समर्थन में जाली दस्तावेज़ जमा कराए हैं।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने 18 मई को पारित आदेश में कहा कि महिला इस अदालत से भी तथ्यों और दस्तावेजों को छुपाने की दोषी है।
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न्यायाधीश ने कहा, “अपने नियोक्ता को जाली दस्तावेज़ जमा कराने के दोषी कर्मचारियों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए। अगर कोई शख्स जाली दस्तावेज जमा कराता है तो वह निश्चित तौर पर नौकरी के लिए उपयुक्त नहीं है।”
न्यायाधीश ने कहा कि इस प्रकार, याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप साबित होते हैं और उन्हें सेवा से बर्खास्त करने का फैसला गलत नहीं है।