गोरखालैंड के लिए नये आंदोलन की आग सुलग रही है दार्जिलिंग में
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) और हमरो पार्टी सहित दार्जिलिंग हिल्स में गोरखालैंड समर्थक संगठनों ने संकेत दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पृथक राज्य के गठन को लेकर दबाव बनाने के लिए एक नया आंदोलन शुरू किया जाएगा।पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
दार्जिलिंग/कोलकाता: गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) और हमरो पार्टी सहित दार्जिलिंग हिल्स में गोरखालैंड समर्थक संगठनों ने संकेत दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पृथक राज्य के गठन को लेकर दबाव बनाने के लिए एक नया आंदोलन शुरू किया जाएगा।
जीजेएम प्रमुख और अपने पूर्व संरक्षक बिमल गुरुंग से हाथ मिलाने के लिए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) छोड़ने वाले बिनय तमांग ने जोर देकर कहा कि इस बार आंदोलन किसी दबाव में नहीं झुकेगा।
जीजेएम और हमरो पार्टी ने पश्चिम बंगाल को विभाजित करने के प्रयासों के विरोध में राज्य विधानसभा में पारित एक प्रस्ताव के खिलाफ बृहस्पतिवार को इन पहाड़ियों में बंद का आह्वान किया था, लेकिन कक्षा-10 की बोर्ड परीक्षा के मद्देनजर इसे वापस ले लिया।
तमांग ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, 'आने वाले महीनों में हम बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेंगे, जो (पृथक) गोरखालैंड हासिल करने के बाद ही थमेगा। इस बार न कोई समझौता होगा, न हम दबाव में झुकेंगे। यह गोरखाओं की पहचान स्थापित करने की लड़ाई होगी।'
गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) के लिए 2011 में हुए समझौते से जीजेएम के बाहर निकलने के कुछ दिनों बाद यह घटनाक्रम सामने आया है। जीजेएम ने दावा किया कि दार्जिलिंग के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं किया गया।
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पृथक राज्य के लिए 2017 में हुए आंदोलन के छह साल बाद व्यापक आंदोलन का आह्वान किया गया है। वर्ष 2017 में हुए आंदोलन के दौरान इन पर्वतीय क्षेत्रों में 104 दिनों तक बंद रखा गया था।
हमरो पार्टी के प्रमुख अजॉय एडवर्ड्स ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, 'इन पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों की महत्वाकांक्षाओं की परवाह किए बिना प्रस्ताव पारित करने के तरीके का हम विरोध करते हैं। परीक्षाओं के कारण बंद का आह्वान वापस ले लिया गया था, लेकिन, यह आने वाले दिनों में बड़े जन आंदोलनों की शुरुआत है। हमने पहले से ही भूख हड़ताल शुरू कर दी है।'
हाल के महीनों में दार्जिलिंग में एक नया राजनीतिक पुनर्गठन हुआ है तथा एडवर्ड्स, गुरुंग और तमांग ने गोरखालैंड की मांग को जिंदा करने के लिए हाथ मिलाया है।
दार्जिलिंग में हाल के वर्षों में कई आंदोलन हुए हैं तथा राजनीतिक दलों ने लोगों को पृथक गोरखालैंड राज्य देने और छठी अनुसूची के कार्यान्वयन का वादा किया है। इसके कार्यान्वयन से उन क्षेत्रों को स्वायत्तता मिलेगी, जहां आदिवासी-बसे हुए हैं।
भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) के प्रमुख और जीटीए के अध्यक्ष अनित थापा के टीएमसी सरकार के समर्थन से दार्जिलिंग में नंबर एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने के मद्देनजर इस क्षेत्र के तीन प्रमुख नेताओं को अपने मतभेदों को दूर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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इस बीच, जीजेएम प्रमुख ने हाल ही में पर्वतीय क्षेत्रों की समस्याओं के 'स्थायी राजनीतिक समाधान' के भाजपा के वादे का समर्थन करते हुए बयान दिए हैं।
एक राजनीतिक विश्लेषक और भारतीय गोरखा परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुनीश तमांग ने कहा, 'जीजेएम का वह प्रभाव अब इस पर्वतीय क्षेत्र में नहीं है जो पहले कभी था। हमरो पार्टी भी एक प्रमुख खिलाड़ी नहीं है। यह अब भी कमजोर है और इस पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी कि क्या यह एक बड़े आंदोलन की शुरुआत है।'
हालांकि इस क्षेत्र को पश्चिम बंगाल से अलग करने की मांग एक सदी से अधिक पुरानी है, पृथक गोरखालैंड के आंदोलन को 1986 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता सुभाष घीसिंग ने आगे बढ़ाया था।