मेरे पिता कहते थे कि इंदिरा गांधी के साथ उनका कार्यकाल ‘‘स्वर्णिम दौर’’ था: शर्मिष्ठा मुखर्जी

डीएन ब्यूरो

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने बताया कि उनके पिता कहा करते थे कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में उनका कार्यकाल उनके राजनीतिक जीवन का ‘‘स्वर्णिम दौर’’ था। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

इंदिरा गांधी के साथ उनका कार्यकाल ‘‘स्वर्णिम दौर’’ था
इंदिरा गांधी के साथ उनका कार्यकाल ‘‘स्वर्णिम दौर’’ था


नयी दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने बताया कि उनके पिता कहा करते थे कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में उनका कार्यकाल उनके राजनीतिक जीवन का ‘‘स्वर्णिम दौर’’ था।

शर्मिष्ठा ने साथ ही कहा कि उनके पिता को लगता था कि ‘‘किसी के आगे न झुकने’’ के रवैये के कारण उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया।

अपनी किताब ‘‘प्रणब माई फादर: ए डॉटर रिमेंबर्स’’ के विमोचन पर शर्मिष्ठा ने कहा कि उनके पिता इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में अपने कार्यकाल को अपने राजनीतिक जीवन का ‘‘स्वर्णिम काल’’ बताया करते थे।

किताब का विमोचन उनकी (प्रणब) जयंती के अवसर पर किया गया। इस कार्यक्रम में कांग्रेस नेता पी.चिदंबरम और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता विजय गोयल भी मौजूद रहे। इस किताब में पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी की डायरियों से भी संदर्भ लिया गया।

शर्मिष्ठा ने अपनी किताब में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बारे में उनके (पूर्व राष्ट्रपति) आकलन पर भी बात की है, जिसके कुछ अंशों पर विवाद खड़ा हो गया है।

शर्मिष्ठा ने कहा कि उनके पिता भी उस प्रस्तावित अध्यादेश के विरोध में थे, जिसकी एक प्रति राहुल गांधी ने सितंबर 2013 में एक संवाददाता सम्मेलन में फाड़ दी थी, लेकिन उनका मानना था कि इस पर संसद में चर्चा की जानी चाहिए थी।

राहुल ने जिस अध्यादेश की प्रति फाड़ी थी, उसका उद्देश्य दोषी विधायकों को तत्काल अयोग्य ठहराने के उच्चतम न्यायालय के आदेश को दरकिनार करना था। इसके साथ अध्यादेश में यह भी प्रावधान किया गया था कि वे (विधायक) उच्च न्यायालय में अपील लंबित रहने तक सदस्य के रूप में बने रह सकते हैं।

शर्मिष्ठा ने कहा, ‘‘मैंने ही उन्हें (अध्यादेश फाड़ने वाली) यह खबर सुनाई थी। वह बहुत गुस्से में थे।’’

उन्होंने यह भी कहा कि देश के राष्ट्रपति के रूप में उनके पिता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक टीम के रूप में काम किया।

पूर्व नौकरशाह पवन के वर्मा के साथ किताब पर बातचीत के दौरान उन्होंने जिक्र किया कि उन्होंने अपने पिता के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में भाग लेने को लेकर उनका विरोध किया था।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने बाबा से उनके फैसले पर तीन-चार दिन तक लड़ाई की। एक दिन उन्होंने कहा कि किसी चीज को वैध ठहराने वाला मैं नहीं, बल्कि यह देश है। बाबा को लगता था कि लोकतंत्र में संवाद जरूरी है। विपक्ष के साथ संवाद करना जरूरी है।’’

चर्चा की शुरुआत में उन्होंने यह भी कहा कि किताब में राहुल गांधी का जिक्र बहुत कम है।

शर्मिष्ठा ने कहा कि उनके पिता अक्सर कहते थे कि कांग्रेस ने संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की और ‘‘इसे बनाए रखने का काम पार्टी का है।’’

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार पुस्तक की आलोचना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी वरिष्ठ नेता ने इस किताब पर बात नहीं की है, केवल पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा है कि वह इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने इसे पढ़ा नहीं है।

शर्मिष्ठा ने कहा कि किताब के विमोचन कार्यक्रम में कांग्रेस नेताओं में केवल चिदंबरम ही पहुंचे, इससे उन्हें काफी दुख हुआ है।










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