Mumbai: उच्च न्यायालय ने महिला को बेटी के साथ अमेरिका स्थानांतरित होने की मंजूरी दी

डीएन ब्यूरो

बंबई उच्च न्यायालय ने एक महिला को अपनी बेटी के साथ अमेरिका स्थानांतरित होने की इजाजत दे दी है। इसने साथ ही यह शर्त भी रखी है कि अगर वह तालाकशुदा पति को बच्ची की पहुंच से दूर रखती है तो उसे पुणे में सह-स्वामित्व वाले फ्लैट का अपना 50 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

बंबई उच्च न्यायालय
बंबई उच्च न्यायालय


मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने एक महिला को अपनी बेटी के साथ अमेरिका स्थानांतरित होने की इजाजत दे दी है। इसने साथ ही यह शर्त भी रखी है कि अगर वह तालाकशुदा पति को बच्ची की पहुंच से दूर रखती है तो उसे पुणे में सह-स्वामित्व वाले फ्लैट का अपना 50 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार महिला ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर बेटी को अपने साथ अमेरिका ले जाने की अनुमति मांगी थी। वर्तमान में बच्ची का संरक्षण महिला के पास है।

इस मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बी पी कोलाबवाला और न्यायमूर्ति एम एम सथाये की खंडपीठ ने चार सितंबर को यह आदेश पारित किया।

दंपति ने 2020 में आपसी सहमति से एक-दूसरे से तलाक ले लिया था, लेकिन बेटी के संरक्षण को लेकर विवाद हो गया। पुणे की एक पारिवारिक अदालत ने बच्ची का संरक्षण मां को दे दिया, लेकिन यह भी कहा था कि पिता बच्ची से नियमित रूप से मिल सकेगा।

पिछले तीन वर्षों में दोनों पक्षों ने कई आवेदन दायर किए। इनमें पिता द्वारा दायर की गई अवमानना ​​याचिका भी शामिल है। इसमें उसने बेटी से नहीं मिलने देने का आरोप भी लगाया था।

जब महिला ने अमेरिका में स्थानांतरित होने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में आवेदन दायर किया तो पीठ ने दोनों को मध्यस्थता से विवाद सुलझाने का निर्देश दिया।

इसके बाद दोनों ने उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी सहमति की शर्तें दायर कीं।

पीठ ने उल्लेख किया कि अलग हो चुके पति ने बेटी को मां के साथ अमेरिका में स्थानांतरित होने की अनुमति दे दी और साथ ही शर्त रखी कि उसे बेटी से मिलने दिया जाएगा तथा महिला को अपने द्वारा दायर किए गए कुछ आपराधिक मामले वापस लेने होंगे।

हालांकि, व्यक्ति ने यह आशंका जताई कि हो सकता है कि महिला शर्तों का पालन न करे। उसने दलील दी कि अमेरिका जाने के बाद इन शर्तों को लागू करने का कोई ठोस तरीका नहीं होगा क्योंकि उस समय महिला भारतीय अदालतों के अधिकारक्षेत्र से बाहर होगी।

पीठ ने कहा कि यदि सहमति की शर्तों का उल्लंघन किया गया, तो पुरुष अवमानना कार्यवाही दायर करने के लिए स्वतंत्र होगा।

अदालत ने कहा, ‘‘अवमानना ​​कार्यवाही के दौरान अगर अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि महिला ने पिता को बच्ची से न मिलने देने के लिए सहमति की शर्तों की जानबूझकर अवज्ञा की है तो न्यायालय के पास यह अधिकार होगा कि वह महिला को पुणे स्थित फ्लैट में अपना 50 प्रतिशत हिस्सा बच्ची के पिता को देने के लिए कह सके।’’

पीठ ने कहा कि अगर महिला अपना हिस्सा नहीं देती है तो अदालत उसके 50 प्रतिशत हिस्से को पुरुष को हस्तांतरित करने की कार्रवाई करने के लिए एक न्यायालय आयुक्त नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र है।










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