महराजगंज: दूसरों के घर रोशन करने वाले कलाकार इस त्योहार अंधेरे में रहने को मजबूर, जानिये इन कुम्हारों की पीड़ा

डीएन ब्यूरो

देशभर में फैले कोरोना महामारी के बाद हुए लॉकडाउन की वजह से कई तरह के व्यवसायों को नुकसान पहुंचा है। इसी वजह से कुम्हारों का व्यवसाय भी प्रभावित हुआ है। डाइनामाइट न्यूज़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पढ़ें पूरी खबर।



सिसवा बाजार (महराजगंज): कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने इस साल करवा चौथ, दिवाली व छठ पूजा जैसे कई त्योहारों में मिट्‌टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार कारीगरों के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। इस साल पहले की अपेक्षा इनका त्योहार काफी फीका रहेगा। त्योहारों में मिट्टी के बर्तन ज्यादा न बिकने से कुम्हार करीगरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

बिक्री और कामकाज में अभूतपूर्व गिरावट के कारण सालो ंसे दूसरे के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों के घरों में मंदी के चलते इस बार अंधेरा जैसा छाया हुआ है। नाउम्मीदी और निराशा में जी रहे इन कलाकरों के लिये सरकारी दावे भी हवा-हवाई ही साबित हुए। 

कोठीभार थाना क्षेत्र के ग्राम सभा हेवती गांव व आसपास क्षेत्र में बसें कुम्हार करीगरों पर लाकडाउन के समय से ही इनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था।

डाइनामाइट न्यूज संवावदाता से बात करते हुए ग्राम हेवती निवासी कुम्हार प्रभु प्रजापति ने बताया कि वह करीब 40 सालों से वह मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने परिवार का भरन पोषण करते हैं। लेकिन कोरोना के कारण उन्होंने इस साल सिर्फ पच्चीस हजार दीये बनाएं है। जबकि वो इससे पहले साल करीब पच्चास हजार दीये बनाने थे। लेकिन कोरोना की वजह से इस बार इसकी ज्यादा बिक्री ना होने से दो रोटी खाने को आफत हो रही है। 

आगे वो कहते हैं कि जब दीये की खरीददारी करने वाले ही कम रह गए हैं तो ज्यादा बनाने से क्या फायदा। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक चायनीज दीये, लाईटों की मांग हर साल बढती ही जा रही है। दो जून की रोटी-रोजी के लिए कड़ी धूप में मेहनत करने वाले कुम्हार लोगों का परिवार मिट्टी के व्यवसाय में महीनों लगा रहता है। इसके बावजूद न तो उसे सही दाम मिलते हैं और न ही खरीददार। 

वहीं ग्राम सभा हरपुड़ पकड़ी के बलुआ टोला 55 वर्षीय मोहन प्रजापति ने डाइनामाइट न्यूज़ संवावदाता को बताया कि अब मिट्टी के दीप का जमाना गया। कभी दीपावली पर्व से एक महीने पहले मोहल्लों में रौनक हो जाती थी और कुम्हारों में भी यह होड़ रहती थी कि कौन कितनी कमाई करेगा। लेकिन अब तो खरीददार ही नजर नहीं आते।

बरसों से मिट्टी के बर्तन बेचकर पेट पालने वाले सोहन प्रजापति का कहना है, "महंगाई की मार से मिट्टी भी अछूती नहीं रही। कच्चा माल भी महंगा हो गया है। दिन रात मेहनत करने के बाद हमें दुकानदारों से 80 रुपया प्रति सैकड़े का भाव मिलता है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले कुछ सालों में मिट्टी के बर्तन समाप्त हो जाएंगे। अगर ऐसा ही रहा तो बाजार में इनका कोई मोल नही रहेगा। 










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