DN Exclusive: फ़ायदा पहुँचाया जा रहा है विमान कंपनियों को और दावा जनता हित का?

सरकार ने तो दावा किया था कि हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाई यात्रा कर सकेंगे। लेकिन प्रीमियम इकोनामी श्रेणी के लिये भी निम्न किराया सीमा देखकर सरकार के दावे हवा-हवाई ही नजर आते हैं। पढिये डाइनामाइट न्यूज की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 12 October 2020, 11:26 AM IST
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नई दिल्ली: कहाँ तो दावा था कि हवाई चप्पल पहनने वाले भी हवाई यात्रा कर सकेंगे। क्या ये दर हवाई चप्पल वालों की है? क्यों नहीं सरकार ये साफ़-साफ़ तय करती कि कितने प्रतिशत टिकट न्यूनतम दरों पर ही बुक करने होंगे। सरकार द्वारा घोषित किये गये इकोनॉमी श्रेणी की सीटों के लिए तय निम्न किराया सीमा को देखे तो साफ पता चलता है कि हवाई यात्रा के लिये गरीबों के नाम पर सरकार द्वारा किये गये दावे महज हवा-हवाई जैसे दिख रहे हैं। 

नागर विमानन मंत्रालय ने 21 मई को घरेलू यात्री विमान सेवाओं के लिए सात श्रेणियों में किराये की उच्च और निम्न सीमाएं 24 अगस्त तक के लिए निर्धारित की थीं। बाद में इसे 24 नवंबर तक बढ़ा दिया गया। 

सरकार द्वारा उड़ान की समयावधि के आधार पर घोषित की गयी निम्न और उच्च किराया सीमा न्यूनतम 40 मिनट के लिये 2000 रुपये से 6000 रुपये तक है। समयावधि के अनुसार किराये की राशि भी अलग-अलग स्लैब के लिये उसी अनुपात में बढ़ती है। 180 मिनट से 210 मिनट की उड़ान अवधि के लिये यह न्यूनतम किराया 6500 रुपये से 18,600 रुपये है। 

उड़ान अवधि के हिसाब से हवाई किराये की न्यूनतम और अधिकतम किराया राशि का यदि आकलन किया जाये को साफ दिखता है कि घोषित किराये में हवाई चप्पल पहने किसी गरीब व्यक्ति के लिये उड़ान मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सी है। जबकि सरकार के दावे थे कि हवाई चप्पल पहना व्यक्ति भी आसानी से हवाई सफर कर सकेगा। लेकिन घोषित दरें किसी गरीब के पहुंच से दूर दिखती है।

ऐसे में साफ नजर आता है कि सरकार द्वारा गरीब के नाम के घोषित की गयी हवाई दरें महज हवा-हवाई ही है। सरकार को यह साफ़-साफ़ तय करना चाहिये कि कितने प्रतिशत टिकट न्यूनतम दरों पर बुक करने होंगे। 

उड़ान अवधि के आधार पर ही न्यूनतम और अधिकतम किराया दरों में टिकटों की बुकिंग का प्रतिशत या अनुपात अनिवार्य रूप से घोषित नहीं किये जाने से ऐसा लगता है कि सरकार गरीबों के नाम पर ये सारे लाभ विमानन कंपनियों को देना चाहती है। विमानन कंपनियां को इसका सीधा फायदा मिलता दिखता है।

उड़ान अवधि के आधार पर गरीबों के लिये घोषित हवाई किराये में पारदर्शिता का भारी आभाव नजर आता है, जिसे सरकार को जनहित में जल्द ठीक करना चाहिये।