NCERT की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव पर शिक्षाविदों की आपत्तियों को लेकर जानिये क्या बोले UGC अध्यक्ष

डीएन ब्यूरो

एक दिन पहले ही 33 शिक्षाविदों ने एनसीईआरटी से पाठ्यपुस्तकों से अपना-अपना नाम हटाने का अनुरोध करते हुए कहा था कि उनका सामूहिक रचनात्मक प्रयास खतरे में है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

प्रतीकात्मक चित्र
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नयी दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पाठ्यपुस्तकों में बदलाव को लेकर उत्पन्न विवाद के बीच उसका (एनसीईआरटी का) बचाव करते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार ने शुक्रवार को कहा कि इस बारे में कुछ शिक्षाविदों की आपत्तियों में कोई दम नहीं है और इनके द्वारा निशाना साधा जाना ‘अवांछित’ है।

कुमार की यह टिप्पणी, राजनीतिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से मुख्य सलाहकार के रूप में अपना नाम हटाने के लिए शिक्षाविद सुहास पालसीकर और योगेन्द्र यादव द्वारा कुछ दिन पहले एनसीईआरटी को पत्र लिखे जाने के बाद आई है।

एक दिन पहले ही 33 शिक्षाविदों ने एनसीईआरटी से पाठ्यपुस्तकों से अपना-अपना नाम हटाने का अनुरोध करते हुए कहा था कि उनका सामूहिक रचनात्मक प्रयास खतरे में है।

यूजीसी प्रमुख कुमार ने ट्वीट किया, ‘‘हाल में, कुछ शिक्षाविदों ने पाठ्यपुस्तकों में संशोधन को लेकर एनसीईआरटी पर निशाना साधा, जो अवांछित है। पाठ्यपुस्तकों में वर्तमान बदलाव पहली बार नहीं हो रहा है। एनसीईआरटी ने पहले भी समय समय पर पाठ्यपुस्तकों में संशोधन किया है।’’

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उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी ने भी इस बात की पुष्टि की है कि वह हाल में विद्यालयी शिक्षा पर जारी किये गये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा के आधार पर नयी पाठ्यपुस्तकें तैयार कर रहा है तथा अकादमिक भार कम करने के लिए मौजूदा पाठ्यपुस्तकों को युक्तिसंगत बनाया गया है, जो केवल अस्थायी चरण है।

यूजीसी के अध्यक्ष ने कहा, ‘‘ऐसे में, इन शिक्षाविदों की ‘आपत्तियों’ में कोई दम नहीं है। इस प्रकार का असंतोष प्रकट करने का कारण अकादमिक नहीं, बल्कि कुछ और है।’’

उल्लेखनीय है कि 73 शिक्षाविदों ने बृहस्पतिवार रात जारी एक संयुक्त बयान में आरोप लगाया कि एनसीईआरटी को बदनाम करने की पिछले तीन महीने से जानबूझकर कोशिश की जा रही है और यह ‘‘शिक्षाविदों के बौद्धिक अहंकार को दर्शाता है जो चाहते हैं कि छात्र 17 साल पुरानी पाठ्यपुस्तकों को ही पढ़ते रहें।’’

बयान में कहा गया है, ‘‘प्रमुख सरकारी संस्थान एनसीईआरटी को बदनाम करने और पाठ्यक्रम अद्यतन करने के लिए अत्यावश्यक प्रक्रिया को बाधित करने की पिछले तीन महीने से जानबूझकर कोशिश की जा रही हैं।’’

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गौरतलब है कि एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से कई विषयों और अंशों को हटाने से पिछले महीने यह विवाद शुरू हुआ था। विवाद के मूल में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पाठ्यपुस्तकों को तर्कसंगत बनाने की कवायद के तहत किये गये परिवर्तनों को अधिसूचित किया गया था, लेकिन विवादास्पद रूप से हटाई गई कुछ सामग्री का उल्लेख नहीं किया गया था।

एनसीईआरटी ने नये शैक्षणिक सत्र के लिए 12वीं कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में से ‘महात्मा गांधी की मौत का देश में साम्प्रदायिक स्थिति पर प्रभाव, गांधी की हिन्दू मुस्लिम एकता की अवधारणा ने हिन्दू अतिवादियों को उकसाया,’ और ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध’ सहित कई पाठ्य अंशों को हाल में हटा दिया था।

वहीं, 11वीं कक्षा की समाज शास्त्र की पाठ्यपुस्तक से गुजरात दंगों के अंश को भी हटा दिया गया है।

एनसीईआरटी ने हालांकि कहा था कि पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने की कवायद पिछले वर्ष की गई और इस वर्ष जो कुछ हुआ है, वह नया नहीं है।










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