काश! आईएएस-आईपीएस कभी अपने आप को फरियादी की जगह रखकर देखते..

मनोज टिबड़ेवाल आकाश

जब से देश की बागडोर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संभाली है तबसे उन्होंने जमकर मनबढ़ व भ्रष्ट किस्म के अफसरों पर नकेल कसी है। बड़ी संख्या में कदाचार में लिप्त नौकरशाहों को समय से पहले अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर भेज जबरन रिटायर किया है और यह सिलसिला लगातार चल रहा है।

प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटो


नई दिल्ली: 'नौकरशाही' शब्द अपने नकारात्मक अर्थों में लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, पक्षपात, अहंकार, अभिजात्य के लिए कुख्यात है। अमूमन लोग यह आरोप लगाते हैं कि नौकरशाही काम नहीं करना चाहती या फिर करती है तो अपनी सुविधा-संतुलन के हिसाब से। 

इसी नौकरशाही में अच्छे अफसरों की भी कमी नहीं लेकिन कुल जमा पूंजी में इनका प्रतिशत काफी कम है। नौकरशाही पर बड़ी जिम्मेदारी होती है समाज में प्रगति, कल्याण, सामाजिक परिवर्तन, कानून व्यवस्था और सुरक्षा की। 

साल 2006 से हर वर्ष 21 अप्रैल को सिविल सेवा दिवस के रुप में मनाया जा रहा है। इसका मकसद है आईएएस-आईपीएस व अन्य सरकारी सेवाओं से जुड़े सिविल सेवकों को स्वयं को नागरिकों के लिए पुनर्समर्पित करने तथा लोक सेवा और कार्य में उत्कृष्टता हेतु अपनी वचनबद्धता को दोहराने और याद करना। 

लॉकडाउन ने एक नयी तरह की चुनौती जनता के सामने पेश की है। एक तरफ कुंआ है तो दूसरी तरफ खाई। न उगलते बन रहा है और न निगलते। फिर भी जनता पीएम की अपील पर पूरा सहयोग कर रही है। 

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लॉकडाउन का प्रतीकात्मक ग्राफिक्स

करीब महीने भर से चल रहे इस अनोखे किस्म के सत्याग्रह में गांव-कस्बे के स्तर पर लोगों को अलग-अलग तरह की दिक्कतें हो रही हैं। कुछ दिक्कतें तो टाली जा सकती हैं लेकिन कुछ दिक्कतें ऐसी होती है जिनका इलाज तत्काल आवश्यक होता है। ऐसा न करने पर समस्या और विकराल हो जाती है। 

भारत जैसे विशाल कृषि प्रधान देश में सबसे अधिक समस्या गरीबों की थाने और तहसील स्तर की होती हैं। जिनके समाधान में सबसे बड़ी भूमिका होती है संबंधित जिले के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की। 

अलग-अलग स्तरों से जो खबरें छनकर आ रही है उसके मुताबिक तमाम ऐसे जिले हैं, जहां के डीएम और एसपी सुविधाभोगी हो गये हैं। उनके कानों पर न तो प्रधानमंत्री की बातें रेंग रह रही हैं और न ही राज्य के सीएम की। मनमानी पर उतारु इन अफसरों को अच्छा बहाना मिल गया है लॉकडाउन के नाम पर। 

जरुरी से जरुरी काम यदि करने का मन न हो, टालना हो तो सीधे कहते हैं, अभी तो कुछ नहीं कर सकते बहुत व्यस्त हैं लॉकडाउन के बाद देखेंगे। 

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हैरानी की बात ये और अधिक है की यह बुरी आदत नये लड़कों में अधिक देखने को मिल रही है। जिन्हें नौकरी करते पांच-सात साल ही हुए हैं। जिले का चार्ज भी पहली बार या दूसरी बार ही मिला है, वे और अधिक आलसी हो गये हैं।

देश सेवा की शपथ लेकर आने वाले इन अधिकारियों को देख काफी निराशा होती है कि आगे इनका 25-30 साल का करियर बचा है। शुरुआत में ही इतना अहंकार तो आगे चलकर क्या करेंगे। 

काश कभी ये अपने-आप को फरियादी की जगह रखकर देखते तो शायद इनका व्यवहार ही अलग होता।

(लेखक मनोज टिबड़ेवाल आकाश नई दिल्ली में बतौर वरिष्ठ पत्रकार कार्यरत हैं और वर्तमान में  डाइनामाइट न्यूज़  के एडिटर-इन-चीफ हैं। इन्होंने दूरदर्शन समाचार, नई दिल्ली में एक दशक तक टेलीविजन न्यूज़ एंकर और वरिष्ठ राजनीतिक संवाददाता के रूप में कार्य किया है। इन्होंने लंबे समय तक डीडी न्यूज़ पर प्रसारित होने वाले लोकप्रिय इंटरव्यू बेस्ड टॉक शो  एक मुलाक़ात’  को बतौर एंकर होस्ट किया है। इन्हें प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का दो दशक का अनुभव है)










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