

गुजरात उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस जनहित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, जिसमें जूनागढ़ शहर में पथराव की घटना के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों की सार्वजनिक पिटाई में कथित रूप से शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया गया था।
अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस जनहित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, जिसमें जूनागढ़ शहर में पथराव की घटना के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों की सार्वजनिक पिटाई में कथित रूप से शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया गया था।
जनहित याचिका में सार्वजनिक रूप से अल्पसंख्यक समुदाय के आठ से 10 लोगों की पिटाई करने के आरोपों के अलावा यह भी कहा गया है कि स्थानीय पुलिस ने ‘बदला लेने के लिए’ उन लोगों के घरों में तोड़फोड़ की थी, क्योंकि पथराव में कुछ पुलिसकर्मी घायल हो गए थे।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ए.जे. देसाई और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने सुनवाई के लिए याचिका स्वीकार किये जाने के बाद याचिकाकर्ताओं को याचिका की एक-एक प्रति सरकारी वकील को उपलब्ध कराने को कहा और आगे की सुनवाई के लिए 28 जून की तारीख तय की।
यह जनहित याचिका गैर-सरकारी संगठन लोक अधिकार संघ और अल्पसंख्यक समन्वय समिति ने संयुक्त रूप से दायर की है।
गौरतलब है कि 16 जून की रात को उस वक्त झड़प हो गई जब नगर निकाय अधिकारियों की एक टीम ने जूनागढ़ शहर में एक दरगाह को ढहाने का नोटिस दिया। पुलिस के अनुसार, इस कार्रवाई के विरोध में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा किए गए पथराव में एक व्यक्ति की मौत हो गई।
याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम समुदाय के आठ से 10 लोगों को जूनागढ़ पुलिस ने हिरासत में लिया और उन्हें माजेवाडी गेट इलाके में 'गेबन शाह मस्जिद' के सामने खड़ा करके बेरहमी से सार्वजनिक रूप से उनकी पिटाई की गयी।
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