Maharajganj: लाचार विभाग, तंग संसाधन और स्टाफ की कमी; कैसे संभले ये बड़ी जिम्मेदारी

डीएन संवाददाता

महराजगंज जिले में एक ऐसा भी सरकारी विभाग है जिसके पास न तो संसाधन ही हैं और न ही पर्याप्त स्टाफ है। ऐसे में जिले के विभिन्न क्षेत्रों से मिलने वाले अनाथ बच्चों का जीवन भी खतरे में दिखाई दे रहा है। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज की इंट्रोगेटिव रिपोर्ट

बाल संरक्षण विभाग
बाल संरक्षण विभाग


महराजगंजः जनपद मुख्यालय पर एक ऐसा विभाग सामने आया है, जिसके पास न तो पर्याप्त स्टाफ है और न ही संसाधन। इस विभाग पर 12 ब्लॉक व 5 तहसीलों में मिलने वाले अनाथ बच्चों के भविष्य संवारने जैसा महत्वपूर्ण दायित्व है।

डाइनामाइट न्यूज की टीम ने इस विभाग से जुडे कुछ खास बिंदुओं पर पड़ताल की तो कई बातें सामने आई।

बाल संरक्षण विभाग
बाल संरक्षण विभाग में कुल 10 पद स्वीकृत हैं। पहला व महत्वपूर्ण पद बाल संरक्षण अधिकारी का है, जो अब बर्खास्त हो चुके हैं। दूसरा पद विधि सह परीवेक्षा अधिकारी का है इस पद पर मनोज श्रीवास्तव की तैनाती है। तीसरे व चौथे पद पर एक महिला गुड्डी शर्मा व पुरूष सिद्धार्थ पांडेय सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कार्यभार देखते हैं। इसके अलावा 3 कम्प्यूटर आपरेट, एक काउंसलर सुबोधनाथ जो प्रोबेशन कार्यालय से संबद्ध हैं।

दो आउटरिच कार्यकर्ता हरि प्रसाद व बीना हैं। कार्मिकों से मिली जानकारी के अनुसार काउंसलर के दर्शन बाल संरक्षण इकाई में कभी हो जाएं तो लोग धन्य समझते हैं। 

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जिम्मेदारियां 
12 ब्लाक एवं 4 तहसील में मिलने वाले अनाथ बच्चों की सूचना पाकर बाल संरक्षण विभाग के कार्यकर्ता मौके पर जाकर उसे लाएंगे और दवा, कपड़ा, भोजन आदि की व्यवस्था करेंगे। इसके अलावा परिजनों की खोजबीन करेंगे।

परिजनों के न होने की स्थिति में उन्हें गोरखपुर या देवरिया बाल संरक्षण गृह में भी भेजने की जिम्मेदारी इस विभाग पर है। इसके अलावा 7 निर्धारित कार्य है जिसमें मुख्यमंत्री बाल सेवा कोविड/सामान्य, स्पांसरशिप योजना, देखरेख वाले बच्चों का संरक्षण, पीड़ित बच्चों की देखभाल, एसआईआर रिपोर्ट, जेल बंदी मां के साथ रह रहे बच्चों की देखरेख के अलावा सीडब्ल्यू सी के समस्त आदेशों का पालन करना भी इसी विभाग के जिम्मे है। 

वाहन उपलब्ध नहीं 
मानक के अनुसार 1098 पर काल आने पर 30 से 60 मिनट पर निर्धारित स्थान पर पहुंचना अनिवार्य है। सरकार द्वारा इस विभाग को कोई वाहन उपलब्ध भी नहीं कराया गया जिसके सहारे यह निर्धारित समय में गंतव्य को पहुंच सकें।  

मुख्यालय से दूरी
जनपद में 12 ब्लाक एवं 4 तहसील हैं। यदि यहां अनाथ बच्चे मिल जाएं तो जिले से दूरी निम्नवत है। सदर से नौतनवा 72 किमी, सदर से निचलौल 30 किमी, सदर से फरेंदा 30 किमी, सदर से सोनौली 90 किमी, सदर से बृजमनगंज 40 किमी है। अपर्याप्त संसाधन और अपर्याप्त स्टाफ के भरोसे जिले में अनाथ बच्चों के हित में मुहिम छेड़ने की कवायद की जा रही है। 

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चाइल्ड लाइन नहीं
जनपद के सभी ब्लाक व तहसीलों पर चाइल्ड लाइन की नियुक्ति आज तक नहीं की जा सकी है। ऐसे में केवल बाल संरक्षण विभाग के भरोसे अनाथ बच्चों की सेवा आखिर कैसे संभव होगी, यह समझ से परे है। 

बाल संरक्षण गृह नहीं
जनपद स्थापना के 35 दशक बाद भी यहां आज तक बाल संरक्षण गृह का निर्माण नहीं कराया गया, संचालन कराना तो दूर की बात है। कोरोना जैसी महामारी के दौर में 70 ऐसे बच्चे चिन्हित भी किए गए थे जिनके माता एवं पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी थी। सरकारी सहायता के नाम पर 31 बच्चों को प्रतिमाह चार हजार रूपए भरण पोषण मिल पाया। तत्कालीन प्रोबेशन अधिकारी डीसी त्रिपाठी ने इस पर आवाज भी उठाई थी कि जिले में बाल संरक्षण गृह अति आवश्यक है। 

हेल्प डेस्क भी बेमतलब
नौतनवा के बगहा में मासूम दो वर्षीय खुशी को इसलिए जान गंवानी पड़ी क्योंकि थाने की हेल्प डेस्क ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। पूर्व प्रधान ने स्थानीय 112 पर सूचित किए जाने के बाद भी पुलिस केवल देखकर चली गई। 1098 ने काउंसलर सुबोध को सूचित भी किया किंतु यह हरकत में नहीं आए। जबकि इनके घर की दूरी बगहा से करीब 8-9 किमी ही है।

स्थानीय लोगों के अनुसार पुलिस यदि बच्ची को लेकर थाने गई होती तो भी आज खुशी अपने नाम के अनुरूप खुशहाल होती। जिले की इतनी बडी घटना के बाद भी मुख्य बिंदुओं पर कार्रवाई न होना, समझ से परे है। 










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