Uttar Pradesh: अदालत ने गलत आख्या भेजने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की एक अदालत ने जमानत रद्द करने से जुड़े एक मामले में अदालत को लापरवाही पूर्ण तरीके से गलत आख्या भेजकर गुमराह किए जाने को गंभीरता से लेते हुए प्रमुख सचिव (गृह) व (डीजीपी) को जमानत निरस्त करने की संस्तुति व अनुमोदन देने वाले पुलिस व प्रशासिन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
बलिया: उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की एक अदालत ने जमानत रद्द करने से जुड़े एक मामले में अदालत को लापरवाही पूर्ण तरीके से गलत आख्या भेजकर गुमराह किए जाने को गंभीरता से लेते हुए प्रमुख सचिव (गृह) व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को जमानत निरस्त करने की संस्तुति व अनुमोदन देने वाले पुलिस व प्रशासिन अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक व विभागीय कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि जमानत निरस्त करने के प्रार्थना पत्र में लिया गया आधार वास्तविक तथ्यों व दस्तावेजी साक्ष्यों के पूर्णतः विपरीत, फर्जी, असत्य व गुमराह करने के साथ ही न्यायालय का अमूल्य समय बर्बाद करने वाला है।
अधिवक्ता त्रिभुवन नाथ यादव ने रविवार को बताया कि जिले के अपर सत्र न्यायाधीश द्वितीय की अदालत ने रसड़ा कोतवाली में 2019 में पंजीकृत एक मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 379, 413, 414 में आरोपित विकास उर्फ माझिल की जमानत अर्जी को 10 अप्रैल 2019 को स्वीकार कर लिया था। इसके बाद मामले में रसड़ा कोतवाली के प्रभारी राकेश कुमार सिंह ने एक जून 2022 को जमानत निरस्त करने की आख्या प्रेषित की।
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यादव के मुताबिक, जमानत निरस्त करने की आख्या की पुलिस उपाधीक्षक (रसड़ा) के साथ ही अपर पुलिस अधीक्षक व पुलिस अधीक्षक ने संस्तुति की, जिसके बाद जिलाधिकारी ने 14 जून 2022 को उसे अनुमोदित किया।
उन्होंने बताया कि जिलाधिकारी के 14 जून 2022 के अनुमोदन के आधार पर सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता ने जमानत निरस्त करने का प्रार्थना पत्र न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश में दाखिल किया।
यादव के अनुसार, अपर सत्र न्यायाधीश महेश चंद्र वर्मा के न्यायालय ने 20 जनवरी 2023 को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जमानत निरस्त करने के प्रार्थना पत्र को निरस्त कर दिया। न्यायालय का फैसला शनिवार को देर शाम जारी किया गया।
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उन्होंने बताया कि अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि जमानत निरस्त करने के प्रार्थना पत्र में लिया गया आधार वास्तविक तथ्यों व दस्तावेजी साक्ष्यों के पूर्णतः विपरीत, फर्जी, असत्य व गुमराह करने वाला तथा न्यायालय का अमूल्य समय बर्बाद करने वाला है।
अदालत ने प्रमुख सचिव (गृह) और पुलिस महानिदेशक को मामले में जमानत निरस्त करने की संस्तुति व अनुमोदन देने वाले पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक व विभागीय कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। इस आदेश की प्रति राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी प्रेषित की गई है।