केंद्र, राज्य राजनीति भूलकर पराली जलाने से रोकने के उपायों पर विचार करें: उच्चतम न्यायालय

डीएन ब्यूरो

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि केंद्र और राज्यों को ''राजनीति भूलकर'' यह देखने में अपना दिमाग लगाना चाहिए कि पराली जलाने को कैसे रोका जा सकता है। इसने कहा कि आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी रहने से वायु प्रदूषण के कारण लोग प्रभावित होंगे। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय


नयी दिल्ली:  उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि केंद्र और राज्यों को ''राजनीति भूलकर'' यह देखने में अपना दिमाग लगाना चाहिए कि पराली जलाने को कैसे रोका जा सकता है। इसने कहा कि आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी रहने से वायु प्रदूषण के कारण लोग प्रभावित होंगे।

पंजाब सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि फसल अवशेष जलाने पर भूमि मालिकों के खिलाफ 984 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और दो करोड़ रुपये से अधिक का पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाया गया है तथा लगभग 18 लाख रुपये की वसूली की गई है।

पीठ ने पराली जलाने का संदर्भ देते हुए कहा, ‘‘राज्यों और केंद्र को राजनीति भूलकर यह देखने में अपना दिमाग लगाना चाहिए कि फसल अवशेषों को जलाने को कैसे रोका जा सकता है।’’

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, ‘‘लोगों को इससे कोई सरोकार नहीं है कि आप इसे कैसे करते हैं और आप क्या करते हैं तथा अदालत का काम बारीकियों में पड़ना नहीं है। अदालत का काम है आपसे आपका काम करवाना, यानी प्रदूषण को रोकना। आप यह कैसे करते हैं यह आपकी समस्या है।’’

प्रदूषण के मामले में न्यायालय की सहायता कर रहीं न्याय मित्र एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने पीठ को सूचित किया कि रविवार को भी पंजाब से पराली जलाने की 700 से ज्यादा घटनाएं सामने आईं।

पीठ ने कहा, 'एकमात्र व्यक्ति जो इसका उत्तर दे सकता है वह किसान है। वह आपको बता सकता है कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। वह यहां नहीं है। किसान को खलनायक बनाया जा रहा है और खलनायक की बात नहीं सुनी गई है। हो सकता है कि उसके पास कुछ कारण हों।'

शीर्ष अदालत गंभीर वायु प्रदूषण से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी, जो हर बार सर्दियों में दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) को प्रभावित करता है।

फसल अवशेष जलाने से संबंधित मुद्दे के अलावा, पीठ ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश में खुले में कचरा जलाने से संबंधित अन्य मामलों पर भी विचार किया।

पीठ ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकारों से इस संबंध में कार्रवाई करने और उसके समक्ष रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।

सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने पंजाब में घटते जल स्तर का जिक्र किया और कहा कि अधिक मात्रा में पानी के उपयोग के कारण वहां की भूमि धीरे-धीरे शुष्क हो रही है।

इसने कहा, 'अगर जमीन सूखती है, तो बाकी सबकुछ भी प्रभावित होता है। किसी तरह, किसानों को धान की खेती के परिणामों को समझना चाहिए या समझाया जाना चाहिए।'

यह उल्लेख करते हुए कि उसने पहले भी इस मुद्दे को उठाया था, पीठ ने कहा कि पंजाब में जल स्तर में गिरावट का एक कारण धान की पैदावार है।

पीठ ने कहा कि उसने पूर्व में कहा था कि पंजाब में धान की खेती को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए और इसकी जगह अन्य फसलें उगाई जानी चाहिए तथा अधिकारियों को वैकल्पिक फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने के पहलू का पता लगाना चाहिए।

इसने कहा कि अदालत की टिप्पणियों और परामर्श तथा इस तथ्य के बावजूद कि प्रदूषण के कारण लोग और बच्चे प्रभावित हो रहे हैं, पराली जलाई जा रही है।

पंजाब का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने राज्य में फसल अवशेष जलाने को रोकने के लिए अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में अदालत को अवगत कराया।

उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं और लोग अधिकारियों को आग बुझाने के लिए खेतों तक पहुंचने से रोक रहे हैं।

पीठ ने कहा, ''आपको कानून-व्यवस्था संबंधी मुद्दे से निपटना होगा। कोई भी वर्ग यह नहीं कह सकता कि हम जैसा चाहेंगे वैसा करेंगे। यह नहीं हो सकता। यह स्वीकार्य नहीं है।''

इसने कहा कि हरियाणा द्वारा किए गए वित्तीय प्रोत्साहन के प्रयास से पंजाब भी सीख ले सकता है।

खुले में कूड़ा जलाने के मुद्दे पर पीठ ने पूछा कि इसे नियंत्रित करने के लिए दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकारों ने क्या कार्रवाई की है।

इसने कहा, 'यह यूपी और दिल्ली दोनों में एक समस्या है। हम उम्मीद करते हैं कि दिल्ली और यूपी दोनों कार्रवाई करेंगे तथा हमारे सामने रिपोर्ट दाखिल करेंगे।'

पीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए सात दिसंबर की तारीख निर्धारित की।










संबंधित समाचार