बिहार सरकार आरक्षण वृद्धि को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दे: उच्च न्यायालय

डीएन ब्यूरो

पटना उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को बिहार सरकार से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लिए आरक्षण में हालिया बढ़ोतरी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

पटना उच्च न्यायालय
पटना उच्च न्यायालय


पटना: पटना उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को बिहार सरकार से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लिए आरक्षण में हालिया बढ़ोतरी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने को कहा। राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व प्रदेश के महाधिवक्ता पी के शाही कर रहे हैं।

इस मामले में शाही की सहायता कर रहे वकील विकास कुमार ने बताया कि अदालत द्वारा इस संबंध में दायर की सभी जनहित याचिकाओं की सुनवाई अब एक साथ की जाएगी और सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाबी हालकनामा दाखिल करने को कहा गया है।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि पिछले महीने बिहार विधानसभा द्वारा पारित कानून में, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के अलावा, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया है, जो 'असंवैधानिक' है।

याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क भी दिया है कि प्रसिद्ध इंद्रा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले ने 'कुल आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत तक सीमित कर दिया था जिसे केवल अत्यंत असाधारण मामलों में बदला जा सकता था'।

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि लेकिन राज्य की नीतीश कुमार सरकार ने हाल के जातिगत सर्वेक्षण का हवाला देते हुए 'सिर्फ पिछड़े वर्ग की आबादी में वृद्धि के आधार पर' यह कदम उठाया है, जिसमें ओबीसी और ईबीसी की संयुक्त आबादी 63.13 प्रतिशत बताई गई है।

याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क है कि सर्वेक्षण के आँकड़े 'राजनीति से प्रेरित लग रहे हैं क्योंकि आँकड़े ग़लत होने की अफवाहें हैं।’’

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के नेताओं ने आरोप लगाया था कि सर्वेक्षण में राज्य के सत्तारूढ़ 'महागठबंधन' का नेतृत्व करने वाले राजद की तुष्टि के अनुरूप यादवों और मुसलमानों की संख्या को 'बढ़ाकर' दर्शाया गया है जो अन्य पिछले वर्ग के लिए नुकसानदेह है।

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के पुत्र एवं उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इन आरोपों का खंडन किया है।तेजस्वी यादव अपने पिता के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जा रहे हैं।

महागठबंधन सरकार ने भाजपा पर 'आरक्षण विरोधी' होने का भी आरोप लगाया है। इससे पूर्व भी दायर की गयी याचिकाओं में उसने (सरकार ने) भाजपा का हाथ होने का आरोप लगाया था और कहा था कि स्थानीय निकाय चुनावों और जाति सर्वेक्षण में ईबीसी के लिए आरक्षण के रास्ते में बाधाएं डालने के उद्देश्य से अपने समर्थकों के माध्यम भाजपा इनके खिलाफ याचिकाएं दायर करवाती है।

भाजपा ने इन आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि जब भी विधानसभा में इससे संबंधित कानून लाए गए , तब उसने आरक्षण समर्थक कदमों का समर्थन किया था और जब वह सत्ता में साझेदार थी तभी सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराने का फैसला किया था।

बिहार की महागठबंधन सरकार ने एक कैबिनेट प्रस्ताव पारित कर केंद्र से अनुरोध किया है कि एससी, एसटी, ओबीसी और ईबीसी के लिए कोटा बढ़ाने वाले कानूनों को लंबी कानूनी लड़ाई से बचाने के लिए संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।










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