686 करोड़ की नकली दवाईयों का मामला: डाइनामाइट न्यूज़ की खबर के बाद परेशान पुलिस और स्वास्थ्य विभाग ने मारा सिसवा में दवा दुकानदारों के वहां ताबड़तोड़ छापा, मचा कोहराम
लोगों की जान लेने पर उतारु 686 करोड़ के दवा माफियाओं के खिलाफ जांच के केन्द्र को भटकाने के चर्चाओं की डाइनामाइट न्यूज़ पर भंडाफोड़ के बाद पुलिस और स्वास्थ्य विभाग हरकत में आया है और अचानक सिसवा बाजार कस्बे में पहुंच संदेह के घेरे में आये दवा की दुकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की गयी है। विभाग की यह छापेमारी वाकई निष्पक्ष इरादे से की गयी है या फिर महज खानापूर्ति के लिए इसको लेकर जिले भर में चर्चाओं का बाजार गर्म है। एक्सक्लूसिव रिपोर्ट:
सिसवा बाजार (महराजगंज): काफी हो-हल्ले और पुलिसिया लाव-लश्कर के साथ पुलिस-प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने सिसवा के कुल तीन दुकानों और गोदामों पर छापेमारी की है लेकिन यह छापेमारी काफी कम देर चली जिसको लेकर जांच एजेंसियों को लोग शक की नजर से देख रहे हैं कि वाकई ये छापेमारी 686 करोड़ के रैकेट के असली सरगनाओं को पकड़ने के मकसद से की गयी है या फिर सिर्फ खानापूर्ति के लिए।
4 अगस्त को ठूठीबारी के जमुई में दवा माफियाओं के काले कारनामे का भंडाफोड़ डीएम और एसपी ने किया था तभी से चर्चाओं का बाजार गर्म था कि इसके केन्द्र में सिसवा बाजार के कुछ नामी व्यवसायी हैं। ये सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहते हैं। इन सबको जानने के बावजूद विभाग 7 दिन तक रहस्यमय चुप्पी साधे था।
36 घंटे पहले डाइनामाइट न्यूज़ ने "686 करोड़ की नकली दवा पकड़े जाने के मामले में बड़ी तहकीकात, दो दर्जन को नोटिस, मचा हड़कंप, दवा माफियाओं को बचाने में जुटे सफेदपोश!" शीर्षक से खबर प्रकाशित की, इसके बाद दबाव में आये विभाग ने छापेमारी तो की लेकिन इस छापेमारी की नीयत को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं।
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जिले के उच्च प्रशासनिक सूत्रों ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि अनूप मेडिकल, वैभव मेडिकल और समृद्धि मेडिकल के दुकानों और गोदामों पर छापेमारी और जांच की यह कार्यवाही तीन से पांच बजे के बीच की गयी।
अफसरों का कहना है कि घटना के तार सिसवा के अलावा गोरखपुर के दवा व्यापारियों से जुड़ रहे हैं। गोरखपुर के कौन से दवा व्यापारी जांच के जद में हैं, इसका खुलासा विभाग ने अभी तक नहीं किया है लेकिन माना जा रहा है कि जांच एजेंसियों ने कई बड़े व्यापारियों के नंबरों को सर्विलांस पर लगा रखा है ताकि कोई सुराग मिल सके।
फिलहाल सबसे बड़ा सवाल विभागीय नीयत पर है। इसकी कई वाजिब वजहें हैं, जिन बड़ी कंपनियों की इनमें कोई संलिप्तता होने के आसार नहीं है उन्हें नोटिस थमा जांच को भटकाने का काम किया जा रहा है। अब तक क्यों एजेंसियों ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि किन-किन कंपनियों की किस-किस नाम की नकली दवाईयां कितनी मात्रा में बरामद हुई हैं? सिर्फ दवाओं के फार्मूले के नाम उजागर किये गये हैं। जो जांच की दिशा को लेकर संदेह पैदा कर रहा है।
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आखिर क्यों जांच एजेंसियां यह राज नहीं खोल रही हैं कि पकड़ी गयी कंपनियों की दवाइयों के महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया आदि आसपास के जिलों में कौन-कौन फर्में इन कंपनियों की स्टाकिस्ट/डिस्ट्रीब्यूटर्स/सी एंड एफ के रुप में इस इलाके में ये दवाये मुहैया कराती थीं।
सारे मामले में स्वास्थ्य विभाग के कुछ बड़े अफसरों की भूमिका शुरु से ही संदिग्ध है। इन दागियों के संरक्षण में पले-बढ़े गुनहगारों को बचाने का सिलसिला पर्दे के पीछे से तेज कर दिया गया है।
जिनके नाम चर्चा के केन्द्र में हैं, उनसे कायदे से आज तक इंट्रोगेशन तक नहीं किया गया है, आखिर क्यों?