सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उज्जैन स्थित महाकाल लोक परिसर के पार्किंग क्षेत्र के विस्तार के लिए की जा रही भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट

महाकाल लोक मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उज्जैन स्थित महाकाल लोक परिसर के पार्किंग क्षेत्र के विस्तार के लिए की जा रही भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता।
यह याचिका मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 11 जनवरी के उस आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल की गई थी, जिसमें भूमि अधिग्रहण के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया गया था। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने मामले की संक्षिप्त सुनवाई के बाद याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 7 नवंबर को एक अन्य याचिका भी खारिज कर दी थी, जिसमें उज्जैन में ध्वस्त की गई एक मस्जिद के पुनर्निर्माण के निर्देश देने की मांग की गई थी। यह मस्जिद भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के बाद गिराई गई थी। अदालत ने इस मामले में भी किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।
उज्जैन में लगभग 200 वर्ष पुरानी मानी जाने वाली तकिया मस्जिद को जनवरी माह में ध्वस्त कर दिया गया था। यह कार्रवाई उस जमीन के अधिग्रहण के बाद की गई, जिस पर मस्जिद स्थित थी। अधिकारियों के अनुसार, यह भूमि महाकाल लोक परिसर के पार्किंग क्षेत्र के विस्तार के लिए अधिग्रहित की गई थी।
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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू करने से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment) का अनिवार्य प्रावधान पूरा नहीं किया गया। इस पर पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, "आप केवल कब्जेदार हैं, याचिकाकर्ता जमीन का मालिक नहीं है।" अदालत ने इसी आधार पर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया।
इससे पहले दिसंबर 2024 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने भी इसी मामले से जुड़ी अपीलों को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि राज्य सरकार ने पिछले 30 वर्षों से अधिग्रहित भूमि पर रह रहे लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्हें दी गई मुआवजे की राशि उनके पुनर्वास के लिए अपर्याप्त है।
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि महाकाल लोक परिसर के विकास की पूरी परियोजना कुछ सीमित याचिकाकर्ताओं के कारण रुकी हुई है। उन्होंने मुआवजा स्वीकार करने के बावजूद अधिग्रहित भूमि खाली नहीं की, जिससे परियोजना में अनावश्यक देरी हो रही है।
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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद महाकाल लोक परिसर के पार्किंग विस्तार परियोजना के रास्ते की कानूनी बाधा दूर हो गई है। अब राज्य सरकार को परियोजना को आगे बढ़ाने में किसी न्यायिक अड़चन का सामना नहीं करना पड़ेगा।