अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई होगी। CJI सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले पर फैसला कर सकती है, जिसका असर चार राज्यों में फैली अरावली श्रृंखला और खनन गतिविधियों पर पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट (फोटो सोर्स- इंटरनेट)
New Delhi: अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा को लेकर चल रहा विवाद आज सोमवार को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए आज सुनवाई तय की है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन जजों की अवकाशकालीन पीठ इस अहम मामले की सुनवाई करेगी। पीठ में न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं। इस सुनवाई पर पर्यावरण संरक्षण से जुड़े संगठनों, राजनीतिक दलों और चार राज्यों की निगाहें टिकी हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 20 नवंबर को अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की एक समान परिभाषा को स्वीकार करते हुए दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले अरावली क्षेत्रों में नए खनन पट्टों के आवंटन पर अंतरिम रोक लगा दी थी। अदालत ने यह रोक तब तक के लिए लगाई है, जब तक विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता।
विवाद की जड़ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित एक समिति की सिफारिशें हैं। समिति ने "अरावली पहाड़ी" की नई परिभाषा प्रस्तावित की है। इसके अनुसार, चिह्नित अरावली जिलों में मौजूद ऐसी किसी भी भू-आकृति को अरावली पहाड़ी माना जाएगा, जिसकी ऊंचाई स्थानीय निचले बिंदु से 100 मीटर या उससे अधिक हो। वहीं, "अरावली पर्वतमाला" को एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों के समूह के रूप में परिभाषित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में आज अरावली रेंज की नई परिभाषा पर 3 जजों की पीठ सुनवाई करेगी। CJI सूर्यकांत अरावली मामले की सुनवाई करने वाली वेकेशन बेंच की अध्यक्षता करेंगे...#Aravalli #aravallihills #CJI #SC #DynamiteNews pic.twitter.com/owL1PirqiS
— डाइनामाइट न्यूज़ हिंदी (@DNHindi) December 29, 2025
आलोचकों का कहना है कि इस नई परिभाषा से अरावली की कई छोटी पहाड़ियां, ढलान वाले क्षेत्र और समतल भू-आकृतियां इसकी श्रेणी से बाहर हो जाएंगी, जिससे बड़े पैमाने पर खनन और निर्माण गतिविधियों का रास्ता खुल सकता है।
सुनवाई से एक दिन पहले कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर चार अहम सवाल उठाए। उन्होंने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) के आकलन और सेंट्रल एम्पावर्ड कमिटी (CEC) के निष्कर्षों का हवाला देते हुए नई परिभाषा पर गंभीर आपत्ति जताई है।
जयराम रमेश का कहना है कि अरावली की छोटी पहाड़ी संरचनाएं मरुस्थलीकरण के खिलाफ प्राकृतिक ढाल का काम करती हैं। ये रेत के कणों को रोककर दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों को रेत के तूफानों से बचाती हैं। उन्होंने FSI के 20 सितंबर 2025 के पत्र का हवाला देते हुए कहा कि नई परिभाषा से अरावली की भौगोलिक और पारिस्थितिक अखंडता को गहरा नुकसान पहुंच सकता है।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि राजस्थान में 2012 से अरावली की परिभाषा 28 अगस्त 2010 की FSI रिपोर्ट पर आधारित रही है, जिसमें 3 डिग्री या उससे अधिक ढलान वाले क्षेत्रों, 100 मीटर के बफर जोन और घाटियों को भी अरावली का हिस्सा माना गया था।
पर्यावरण मंत्रालय का दावा है कि नई परिभाषा से अरावली क्षेत्र का केवल लगभग 0.2 प्रतिशत हिस्सा ही खनन के लिए प्रभावित होगा। हालांकि, FSI ने 23 दिसंबर को मंत्रालय के इस दावे पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उसके अध्ययन के अनुसार बड़ी संख्या में पहाड़ियां असुरक्षित हो सकती हैं।
अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट की आज होने वाली सुनवाई पर है, जहां यह तय हो सकता है कि अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा पर्यावरण संरक्षण के हित में है या इससे इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को अपूरणीय क्षति पहुंचेगी।