

देश की राजधानी दिल्ली में 11वें डॉ एल एम सिंघवी स्मारक व्याख्यान में “संविधान की आत्मा के रूप में मानवीय गरिमा: 21वीं सदी में न्यायिक चिंतन” विषय पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व न्यायविद डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने मानवीय गरिमा से संबंधित कानूनों की व्याख्या की और इनकी प्रासंगिकता को बताया। पढ़ें पूरी स्टोरी
11वें डॉ एल एम सिंघवी स्मारक व्याख्यान
New Delhi: राजधानी दिल्ली के अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित 11वें डॉ एल एम सिंघवी स्मारक व्याख्यान माला को संबोधित करते हुए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जिसने आजादी के बाद बंधुत्व, समानता और मानव गरिमा का सबसे ज्यादा ध्यान दिया। उन्होंने कहा कि त्वरित न्याय सुनिश्चित करने और मानव गरिमा व अधिकारों की रक्षा के लिए लोकतंत्र के तीनों स्तंभों - न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका में अभी भी व्यापक बदलाव की आवश्यकता है।
“संविधान की आत्मा के रूप में मानवीय गरिमा: 21वीं सदी में न्यायिक चिंतन” की विषय पर आयोजित 11वें डॉ एल एम सिंघवी स्मारक व्याख्यान को डॉ ओम बिरला ने बतौर मुख्य अतिथि संबोधित किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला
देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने इस व्याखान को बतौर विशिष्ट अतिख के रूप में संबोधित किया। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता व प्रमुख न्यायविद डॉ अभिषेक मनु सिंघवी, ओपी जिंदल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सी राजकुमार, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अविष्कार सिंघवी ने भी इस व्याखान में अपने विचार रखे और मानव गरिमा की रक्षा में कानून की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला।
ओम बिरला ने डॉ एल एम सिंघवी को याद करते हुए कहा कि राजस्थान की धरती से निकले डॉ एल एम सिंघवी विश्व के महान कानूनविद थे। उनकी राय पर कई देशों के संविधान बने। वे कानूनविद के अलावा एक राजनयिक, राजनेता, चिंतक, बहुआयामी व्यक्तित्व वाली शख्सियत थी, जो कविता-कहानियां लिखने के लिये भी जाने-जाते थे। उनके विचार और आदर्श कानून के हर छात्र और अधिवक्ताओं को हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई
डॉ बिडला ने कहा कि हमारे संविधान की मूल प्रस्तावना में मानवीय संवेदना, समानता, बंधुत्व और सबको समान अधिकार व सबको न्याय का प्रावधान है। हमारे सविधान निर्माताओं ने मानवीय गरिमा का विशेष ध्यान रखा। आजादी के 75 वर्षों की यात्रा में कई कानून बदले गये। हमारी सरकार ने भी अंग्रेजों के वक्त के कई कानूनों को बदला। लेकिन त्वरित न्याय के लिए आज भी हमारी संवैधानिक संस्थाओं में व्यापक सुधार व बदलाव की जरूरत है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि मानवीय गरिमा स्वायत्तता, समानता और न्याय की समझ को बदल देती है। कानून न केवल शारीरिक अस्तित्व की रक्षा करता है, बल्कि आत्मसम्मान, गरिमा, स्वतंत्रता और अवसर से भरपूर जीवन जीने के लिए आवश्यक व व्यापक परिस्थितियों की भी रक्षा करता है। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि संविधान एक जीवंत साधन बना रहे।
सीजेआई ने अपना व्याख्यान "लाइवेस्ट जजमेंट" के एक उद्धरण के साथ समाप्त करते हुए कहा कि, " जीवन जीना गरिमा के साथ जीना है। गरिमा वह मूल है, जो मौलिक अधिकारों को जोड़ती है और क्योंकि मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए अस्तित्व की गरिमा प्राप्त करना चाहते हैं।"
डॉ अभिषेक मनु सिंघवी कार्यक्रम को संबोधित करते हुए
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उन्होंने ओपी जिंदल विश्वविद्यालय और डॉ अभिषेक मनु सिंघवी को डॉ. एल.एम. सिंघवी की स्मृति में आयोजित इस व्याखान को आयोजित करने के लिये धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा डॉ. एल.एम. सिंघवी से वे कभी नहीं मिले लेकिन उनकी महानता और विद्वता के बारे में मैरे पिता ने मुझे बताया। उन्होंने कहा कानून समेत तमाम क्षेत्रों में डॉ एलएम सिंघवी के अपार योगदान के प्रति हम हमेशा उनके आभारी रहेंगे और इसके लिए मैं उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
11वें डॉ एल एम सिंघवी स्मारक व्याख्यान में मौजूद दर्शक
सुप्रसिद्ध न्यायविद, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और वरिष्ठ सांसद डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने पिता व महान कानून विद डॉ एलएम सिंघवी को याद करते हुए उनसे जुड़ी कई नई बातें साझा की। उन्होंने कहा कि डॉ एलएम सिंघवी जी ने ही देश में सबसे पहले लोकसभा में लोकायुक्त और लोकपाल शब्दों को दिया। वे महान कानूनविद होने के साथ हिंदी और संस्कृत के विद्वान भी थे। उन्होंने कहा कि डॉ एलएम सिंघवी ने जो विरासत हमको सौंपी है, जो आदर्श हमको दिये है, उन पर आगे बढ़ना हम सबकी साझी जिम्मेदारी है। अविष्कार सिंघवी ने समारोह में वोट ऑफ थेंक्स प्रस्तुत किया। समारोह में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के फाउंडर चांसलर नवीन जिंदल की विशेष उपस्थिति रही।
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