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राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान में क्या है अंतर? जानिए कहां से मिली पहचान और इसका पूरा इतिहास

आज भारत के राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे हो गए हैं। 1870 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने इस अमर गीत की रचना की थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के हर कोने में देशभक्ति की लौ जलाई। आज भी इसकी गूंज हर भारतीय के हृदय में समान रूप से जीवित है।
Post Published By: Subhash Raturi
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राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान में क्या है अंतर? जानिए कहां से मिली पहचान और इसका पूरा इतिहास

New Delhi: भारत की पहचान उसके प्रतीकों से होती है, तिरंगा, अशोक चिह्न, संविधान, राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत। लेकिन अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत में फर्क क्या है, और राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ की उत्पत्ति कहां से हुई? आइए समझते हैं इसका इतिहास, महत्व और दोनों के बीच का अंतर।

राष्ट्रगीतवंदे मातरम्की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में की थी। उन्होंने इसे अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ (1882) में शामिल किया। यह गीत देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत था और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नारा बन गया। “वंदे मातरम्” का अर्थ है, मां, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं।” यहांमांभारतभूमि का प्रतीक है, जिसे देवी के रूप में बताया गया है। बंकिमचंद्र ने यह गीत संस्कृत और बंगला के मिश्रण में लिखा था। 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पहली बार ‘वंदे मातरम्’ सार्वजनिक रूप से गाया गया। और आज हमारे राष्ट्रगीत के 150 वर्ष पूरे हुए है।

पीएम ने देशवासियों को दी शुभकामनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर देशवासियों को बधाई दी। उन्होनें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी किया। पीएम ने कहा, “वंदे मातरम्, ये एक शब्द, एक मंत्र, एक ऊर्जा, एक स्वप्न, एक संकल्प है। वंदे मातरम्, ये एक शब्द मां भारती की साधना है, मां भारती की अराधना है। वंदे मातरम्, ये एक शब्द हमें इतिहास में ले जाता है…ये हमारे भविष्य को नया हौसला देता है कि ऐसा कोई संकल्प नहीं जिसकी सिद्धी न हो सके, ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जो हम भारतवासी पा न सकें।”

राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान में अंतर

भारत में दो प्रमुख देशभक्ति गीत हैं  ‘जन गण मन’ और ‘वंदे मातरम्’।

दोनों गीत राष्ट्रप्रेम की भावना जगाते हैं, परंतु उनका उपयोग और विधिक मान्यता अलग-अलग है।

लड़ाई का प्रतीक बन गया। हर आंदोलन, हर रैली में केवल यही गूंजता था, “वंदे मातरम्!”

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संविधान में मान्यता और विवाद

संविधान में राष्ट्रगीत के लिए कोई अलग अनुच्छेद नहीं है, परंतु 1950 में हुई संविधान सभा की चर्चा में इसे राष्ट्रगान के समान सम्मान देने का निर्णय लिया गया था। हालांकि, कुछ समुदायों द्वारा इसमें देवी की आराधना के कारण आपत्तियाँ उठाई थी, फिर भी वंदे मातरम्’ को भारत की स्वतंत्रता की आत्मा कहा जाता है।

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आज का महत्व

आज भी “वंदे मातरम्” केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक भावना है जो देशभक्ति और मातृभूमि के प्रति समर्पण का प्रतीक है। चाहे वह स्कूल का प्रार्थना स्थल हो, खेल का मैदान या संसद, जब यह गीत गूंजता है, तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। आज राष्ट्रगीत 150 वर्ष पूरे हो गए है, जिसको लेकर देशभर में उत्साह का माहौल हैं।

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