दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर धर्मशाला में जश्न, उत्तराधिकारी को लेकर भारत ने चीन को दिया स्पष्ट संदेश

धर्मशाला में दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर दुनियाभर से अनुयायी पहुंचे हैं। भारत के वरिष्ठ नेताओं ने भाग लेकर तिब्बती परंपरा का समर्थन किया। चीन के हस्तक्षेप पर किरेन रिजिजू ने स्पष्ट किया कि उत्तराधिकारी का फैसला केवल ‘गादेन फोडरंग’ को करना है, चीन को कोई अधिकार नहीं। यहां पढ़ें पूरी खबर

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 3 July 2025, 5:08 PM IST
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Dharamshala: धर्मशाला इन दिनों जश्न और चिंता का केंद्र बना हुआ है। एक तरफ तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के जश्न को मनाने के लिए दुनियाभर से उनके अनुयायी जुट हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ उनके उत्तराधिकारी को लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के मुताबिक इस खास कार्यक्रम में भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्री किरेन रिजिजू और ललन सिंह भी शामिल होंगे। इस अवसर पर रिजिजू ने साफ तौर पर कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का फैसला सिर्फ उनकी संस्था 'गादेन फोडरंग' का अधिकार है और इसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की कोई जगह नहीं है।

बता दें कि उनका यह बयान चीन के द्वारा दिए दावे के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने एक बार फिर कहा कि उत्तराधिकारी का यह फैसला बीजिंग की इजाजत से ही होगा। दलाई लामा का जन्मदिन ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 6 जुलाई को मनाया जाता है, जबकि तिब्बती पंचांग के अनुसार यह 30 जून से शुरू हो चुका है। ऐसे में पारंपरिक धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

चीन की धृष्टता के बावजूद भारत ने अपना समर्थन जारी रखा
मिली जानकारी के मुताबिक लालन सिंह की भागीदारी राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। प्राचीन बौद्ध शिक्षा केंद्र नालंदा, तिब्बती संस्कृति और भारत की साझी विरासत से उनका जुड़ाव और मजबूत हो गया है। यह भारत की ओर से स्पष्ट संकेत है कि वह तिब्बती आस्था और उनकी सांस्कृतिक का स्वतंत्रत रूप से समर्थन करता है।

चीनी को करारा जवाब
इस बीच, चीन ने फिर दोहराया कि तिब्बती बौद्ध परंपरा में चीनी विशेषताएं हैं और उत्तराधिकार की प्रक्रिया चीनी सरकार की अनुमति से होनी चाहिए। लेकिन दलाई लामा के कार्यालय ने स्पष्ट कर दिया है कि उत्तराधिकारी को मान्यता देने का अधिकार केवल गादेन फोडरंग ट्रस्ट को है।

यह इतना संवेदनशील क्यों है?
यह मुद्दा इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि तिब्बत पर चीनी कब्जे को 60 साल से अधिक हो चुके हैं और दलाई लामा निर्वासन में रहते हुए शांतिपूर्ण तरीके से तिब्बती पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विशेष चिंता की बात 1995 में घोषित 11वें पंचेन लामा का गायब होना है, जिन्हें कथित तौर पर चीन की सुरक्षा एजेंसियों ने हिरासत में लिया था। इसके बाद चीन ने एक अन्य पंचन लामा की नियुक्ति की, जिसे तिब्बती समुदाय और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने कभी स्वीकार नहीं किया।

अगर चीन दलाई लामा की परंपरा में हस्तक्षेप करके राजनीतिक रूप से उत्तराधिकारी थोपने की कोशिश करता है तो यह न केवल धार्मिक परंपरा का उल्लंघन होगा बल्कि सांस्कृतिक पहचान के उल्लंघन के बराबर होगा। ऐसे में भारत के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी यह संदेश देती है कि भारत तिब्बती आस्था, परंपरा और आत्मनिर्णय के अधिकार के साथ खड़ा है।

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