अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की बेंच इस मामले की समीक्षा करेगी। विवाद केंद्र सरकार द्वारा 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली मानने की नई परिभाषा को लेकर है। सुनवाई के बाद नए निर्देश और संरक्षण नीतियों पर अहम निर्णय आने की उम्मीद है।

अरावली मामला
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान पांच बुनियादी सवाल उठाे। अदालत ने सबसे पहले यह जानना चाहा कि क्या अरावली की परिभाषा को केवल 500 मीटर के दायरे तक सीमित करना संरक्षण की मूल भावना के विपरीत है और इससे संरचनात्मक असंतुलन पैदा होता है।
पीठ ने यह भी सवाल उठाया कि इस सीमांकन से क्या गैर-अरावली क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है, जहां नियंत्रित खनन की अनुमति दी जा सकती है। अदालत ने दो अरावली क्षेत्रों के बीच दूरी को लेकर भी गंभीर चिंता जताई। अगर दो पर्वतीय हिस्सों के बीच 700 मीटर का अंतर है, तो क्या उस क्षेत्र में खनन की छूट देना पर्यावरण के लिए नुकसानदेह साबित होगा, इस पर स्पष्ट जवाब मांगा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणीय निरंतरता को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए पूछा कि जैव विविधता और प्राकृतिक संतुलन की रक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी। इसके साथ ही अदालत ने संकेत दिया कि अगर मौजूदा नियमों में कोई कानूनी या नियामक कमी सामने आती है, तो अरावली पर्वतमाला की संरचनात्मक मजबूती बनाए रखने के लिए विस्तृत और वैज्ञानिक आकलन जरूरी हो सकता है
अरावली पहाड़ों को लेकर चल रहे विवाद पर कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने सुप्रीम कोर्ट के रुख का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि अदालत में यह स्पष्ट हो गया कि अरावली पर राजनीति करने के आरोप निराधार थे। रमेश के मुताबिक अरावली दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात ही नहीं, पूरे देश के पर्यावरण संतुलन के लिए अहम है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार संरक्षण के बजाय इसे नुकसान पहुंचाने की दिशा में काम कर रही थी। जयराम रमेश ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि अरावली में हरियाली लौटाना समय की सबसे बड़ी जरूरत है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मोदी सरकार द्वारा अरावली की परिभाषा बदलने के प्रयासों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का स्वागत करती है। अब इस मुद्दे पर और विस्तार से अध्ययन किया जाएगा। यह याद रखना ज़रूरी है कि इस नई परिभाषा का विरोध स्वयं फॉरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया, सुप्रीम…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) December 29, 2025
अरावली की परिभाषा को लेकर 20 नवंबर के फैसले पर रोक लगाने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्वागत योग्य है।
वर्तमान पर्यावरणीय परिस्थितियों को देखते हुए यह बेहद आवश्यक है कि अरावली को लेकर अगली शताब्दी तक की स्थिति को सोचकर काम किया जाए।
पर्यावरण मंत्री को भी अब पर्यावरण के हित में… pic.twitter.com/hZNJEY19SR
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) December 29, 2025
अरावली पहाड़ों की परिभाषा से जुड़े 20 नवंबर के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने को राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अहम बताया है। उन्होंने कहा कि मौजूदा पर्यावरणीय हालात को देखते हुए अरावली को लेकर दीर्घकालिक नीति की जरूरत है, जो आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रख सके। गहलोत ने पर्यावरण मंत्री से अपील की कि वे विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दें।
अरावली पहाड़ों से जुड़े विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम उठाया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने अपने ही पुराने आदेश को फिलहाल स्थगित कर दिया है। इस फैसले के बाद सियासी प्रतिक्रियाएं भी सामने आईं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे सकारात्मक बताते हुए कहा कि जो व्यवस्था भटक गई थी, वह अब दोबारा सही दिशा में आएगी।
अरावली पर्वत श्रृंखला मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने 20 नवंबर के आदेश पर सवाल उठाए और स्पष्ट स्पष्टीकरण की मांग की। CJI ने कहा कि अदालत की कुछ टिप्पणियों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है, जिसे सुधारना जरूरी है। उन्होंने अरावली पहाड़ियों और रेंज की वास्तविक परिभाषा, 500 मीटर से अधिक दूरी की स्थिति, माइनिंग पर रोक या अनुमति, और इसके दायरे में स्पष्टता लाने पर जोर दिया।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की विस्तृत जांच के लिए एक नई एक्सपर्ट कमेटी बनाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार के साथ राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस कमेटी का काम अरावली की वास्तविक परिभाषा और संरक्षण से जुड़े सभी पर्यावरणीय और भू-आकृतिक मुद्दों की समीक्षा करना होगा। अगली सुनवाई में कमेटी की रिपोर्ट पर विचार किया जाएगा
अरावली पर्वत श्रृंखला के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर के अपने फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। पहले के आदेश में अरावली की परिभाषा केवल उन पहाड़ियों तक सीमित की गई थी जो आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची हों। अब कोर्ट ने इस फैसले को स्थगित करते हुए कहा कि अरावली की वास्तविक परिभाषा और संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर दोबारा विचार किया जाएगा। अगली सुनवाई में केंद्र और राज्य सरकारों को नए पर्यावरण और खनन नीतियों के साथ कोर्ट के सामने प्रस्तुत होना होगा।
अदालत ने अगले निर्देशों और सुनवाई की तारीख 21 जनवरी 2026 तय की है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं।
अरावली मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया स्टे लगा दिया है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी।
सुमेरपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा के लिए 'अरावली बचाओ जन आंदोलन' के तहत पैदल मार्च निकाला। मार्च रानी उपखंड क्षेत्र के किरवा से शुरू होकर खरोकड़ा तक गया। पूर्व प्रत्याशी हरिशंकर मेवाड़ा के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ता हाथों में पोस्टर लिए और "अरावली बचाओ भविष्य बचाओ" और"खनन माफिया होश में आओ" जैसे नारे लगाते हुए चल रहे। यह आंदोलन पूरे जिले में गांव-गांव तक चलाया जा रहा है।
New Delhi: अरावली पर्वतमाला को लेकर जारी विवाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई तय की है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली वैकेशन बेंच में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं। यह मामला सीजेआई के वैकेशन कोर्ट में पांचवें नंबर पर लिस्टेड है।
इस मामले की पृष्ठभूमि यह है कि केंद्र सरकार ने 20 नवंबर 2025 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश स्वीकार की थी। नई परिभाषा के अनुसार केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियां ही अरावली श्रेणी में आएंगी। इस निर्णय के बाद राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में विरोध तेज हो गया। पर्यावरणविद और विपक्षी दल यह मानते हैं कि छोटी पहाड़ियों को अरावली श्रेणी से बाहर करने से खनन को बढ़ावा मिलेगा और पारिस्थितिकी को नुकसान होगा।
केंद्र सरकार का कहना है कि यह नई परिभाषा अरावली संरक्षण को कमजोर नहीं करती। बावजूद इसके, विवाद बढ़ने पर 24 दिसंबर को सरकार ने अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर रोक लगाने के आदेश जारी किए। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी नई खनन लीज को मंजूरी नहीं दी जाएगी। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैली सतत पर्वत श्रृंखला की रक्षा करना और अनियमित खनन को रोकना है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की आज की सुनवाई में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए नए निर्देश जारी हो सकते हैं। मामले से जुड़ी पल-पल की अपडेट के लिए बने रहें डाइनामाइट न्यूज़ पर