श्रीलंका में पूर्व राष्ट्रपति पद के विशेषाधिकार खत्म, महिंदा राजपक्षे को छोड़ना होगा सरकारी आवास

श्रीलंका में नया कानून पास होने के बाद पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को सरकारी आवास छोड़ना होगा। सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी के बाद संसद ने पूर्व राष्ट्रपतियों की सभी विशेष सुविधाएं समाप्त कर दी हैं।

Updated : 11 September 2025, 5:22 PM IST
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New Delhi: श्रीलंका की राजनीति में एक बड़ा बदलाव सामने आया है। पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को अब कोलंबो स्थित अपना आधिकारिक सरकारी आवास छोड़ना होगा। संसद द्वारा पारित एक नए कानून के तहत पूर्व राष्ट्रपतियों को मिलने वाले विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए हैं। यह फैसला श्रीलंका की राजनीति में पारदर्शिता और समानता लाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

संसद से कानून पास

महिंदा राजपक्षे, जो 2005 से 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे और बाद में प्रधानमंत्री के तौर पर भी कार्यरत रहे, 2015 से कोलंबो के पॉश इलाके सिनेमन गार्डन स्थित सरकारी आवास में रह रहे थे। लेकिन अब संसद में भारी बहुमत से पारित एक कानून के चलते उन्हें यह आवास खाली करना होगा। सुप्रीम कोर्ट से भी इस कानून को हरी झंडी मिल चुकी है।

नया कानून पूर्व राष्ट्रपतियों और उनकी विधवाओं को मिलने वाली सरकारी सुविधाएं जैसे- मुफ्त आवास, सुरक्षा, वाहन, स्टाफ आदि को खत्म करता है। श्रीलंका में वर्तमान में पाँच पूर्व राष्ट्रपति जीवित हैं, जिनमें से तीन अब तक इन सरकारी विशेषाधिकारों का लाभ ले रहे थे। अब यह सभी लाभ बंद हो जाएंगे।

अब पूर्व राष्ट्रपति नहीं ले सकेंगे सरकारी सुविधा

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब श्रीलंका लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहा है और आम जनता सरकारी खर्चों में कटौती की मांग कर रही थी। एसएलपीपी पार्टी (श्रीलंका पोडुजाना पेरमुना), जिसे राजपक्षे परिवार का समर्थन प्राप्त है, ने इस बिल का विरोध किया, लेकिन इसके बावजूद संसद ने इसे पारित कर दिया।

Mahinda Rajapaksa

पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को छोड़ना होगा सरकारी आवास

महिंदा राजपक्षे अब तमगले लौटेंगे, जहां उनका निजी आवास है। यह स्थान कोलंबो से लगभग 190 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है। यहीं से उन्होंने 1970 में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। गुरुवार को वे कोलंबो छोड़कर अपने पैतृक आवास के लिए रवाना होंगे।

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राजपक्षे रवाना होंगे तमगले

2022 के जनआंदोलन के दौरान राजपक्षे परिवार को भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। उस समय महिंदा के छोटे भाई और तत्कालीन राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा था। प्रदर्शनकारियों ने महिंदा के सरकारी और निजी आवासों पर भी घुसने की कोशिश की थी, लेकिन सुरक्षा बलों की मदद से उन्हें रोका गया था।

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इस नए कानून को श्रीलंका में 'सत्ता और पद के बाद मिलने वाले विशेषाधिकारों को समाप्त करने' की दिशा में एक साहसिक पहल माना जा रहा है। इसे जनता के प्रति जवाबदेही बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। अब देखना होगा कि इस निर्णय का दीर्घकालिक प्रभाव श्रीलंका की राजनीति और प्रशासनिक ढांचे पर किस तरह पड़ता है।

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