Tokyo: जापान की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर होने जा रहा है। प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला कर लिया है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब उनकी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) और उसके गठबंधन सहयोगी को हाल ही में हुए ऊपरी सदन (हाउस ऑफ काउंसलर्स) के चुनावों में बहुमत नहीं मिल पाया।
गठबंधन पड़ा कमजोर
जानकारी के अनुसार, यह पहली बार है जब 1955 के बाद संसद के दोनों सदनों में सत्तारूढ़ गठबंधन अल्पमत में आ गया है। जुलाई 2025 में हुए ऊपरी सदन के चुनाव में LDP और कोमेइतो पार्टी को केवल 47 सीटों पर जीत मिली, जबकि बहुमत के लिए 50 सीटें आवश्यक थीं। इस हार का सीधा असर निचले सदन पर भी पड़ा, जहां गठबंधन पहले से ही कमजोर स्थिति में था।
जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने पद छोड़ने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री ने सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के भीतर विभाजन को रोकने की इच्छा का हवाला देते हुए इस्तीफा देने की घोषणा की।@JPN_PMO #Japan #ShigeruIshiba #primeminister pic.twitter.com/nA9DGIa8Lw
— डाइनामाइट न्यूज़ हिंदी (@DNHindi) September 7, 2025
आंतरिक कलह इस्तीफे का बड़ा कारण
शिगेरु इशिबा ने अक्टूबर 2024 में पूर्व प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के इस्तीफे के बाद पदभार संभाला था। लेकिन उनके नेतृत्व में सरकार लगातार महंगाई, आर्थिक संकट और राजनीतिक घोटालों की मार झेलती रही। इसके अलावा पार्टी के भीतर चल रही आंतरिक कलह, पॉलिटिकल फंडिंग के घोटाले और कई नेताओं की नाराजगी ने स्थिति और गंभीर कर दी।
सूत्रों की मानें तो इशिबा का इस्तीफा पार्टी को टूटने से बचाने के लिए एक रणनीतिक कदम हो सकता है। वह नहीं चाहते कि पार्टी में खुला विद्रोह हो और उसकी साख को और नुकसान पहुंचे। इसलिए उन्होंने स्वेच्छा से पद छोड़ने का फैसला किया है। उनके इस फैसले को कई वरिष्ठ नेताओं ने समर्थन भी दिया है।
इस्तीफे की घोषणा से राजनीति में मची हलचल
इस्तीफे की घोषणा के बाद जापान की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में अब नए प्रधानमंत्री की तलाश शुरू हो चुकी है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अगला नेता कौन होगा, लेकिन उत्तराधिकार को लेकर रस्साकशी शुरू हो गई है। अगर पार्टी सही नेतृत्व नहीं ढूंढ पाती, तो जल्दी ही आम चुनाव की नौबत आ सकती है।
विश्लेषकों का मानना है कि इशिबा का इस्तीफा एक युग के अंत जैसा है, क्योंकि वह एक मजबूत और अनुभवी नेता माने जाते थे। हालांकि उनकी सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सकी, खासकर आर्थिक मोर्चे पर।