

अबुंदंतिया एंटरटेनमेंट और कलेक्टिव मीडिया नेटवर्क ने हाल ही में भगवान हनुमान पर आधारित एक नई फिल्म की घोषणा की है, जो पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से बनाई जा रही है। इस फैसले ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में रचनात्मकता और मानव हस्तक्षेप को लेकर गहरी बहस छेड़ दी है।
अनुराग कश्यप का गुस्सा फूटा
New Delhi: 19 अगस्त मंगलवार को अबुंदंतिया एंटरटेनमेंट और कलेक्टिव मीडिया नेटवर्क ने एक नई फिल्म की घोषणा की, जो भगवान हनुमान पर आधारित है। इस फिल्म की खास बात यह है कि इसे पूरी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से बनाया जा रहा है यानी इसमें इंसानों द्वारा लिखी स्क्रिप्ट, निर्देशित दृश्य या अभिनय की कोई भूमिका नहीं होगी। फिल्म का यह कॉन्सेप्ट इंडस्ट्री के लिए जितना नया है, उतना ही विवादित भी हो गया है। कई कलाकारों, लेखकों और निर्देशकों ने क्रिएटिविटी में ह्यूमन टच की कमी को लेकर नाराजगी जताई है।
"शर्म आनी चाहिए, आप गटर में हों"
सबसे तीखी प्रतिक्रिया फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप की रही। अपने बेबाक अंदाज़ और "गैंग्स ऑफ वासेपुर" जैसी फिल्मों के लिए पहचाने जाने वाले कश्यप ने इस घोषणा पर इंस्टाग्राम पर एक लंबा पोस्ट लिखा, जिसमें उन्होंने न केवल फिल्म के निर्माण पर सवाल उठाए बल्कि कलाकार प्रतिनिधित्व करने वाली एजेंसियों की भूमिका पर भी हमला बोला।
कश्यप ने लिखा “बधाई हो @vijaysubramaniam84… ये वही शख्स है जो @lifeatcollectiveartistsnetwork को लीड करता है जो लेखकों, निर्देशकों और कलाकारों का प्रतिनिधित्व करता है और अब एक ऐसी फिल्म प्रोड्यूस कर रहा है जो पूरी तरह AI से बनाई जा रही है। ये इस बात का संकेत है कि ये एजेंसियां अब सिर्फ पैसे कमाने में दिलचस्पी रखती हैं, न कि रचनात्मकता की रक्षा में।” उन्होंने आगे कहा “अगर कोई भी अभिनेता या कलाकार जो खुद को 'क्रिएटिव' कहता है, उसमें हिम्मत है, तो उसे इस पर सवाल उठाना चाहिए या फिर ऐसी एजेंसी को तुरंत छोड़ देना चाहिए। क्योंकि अगर आपकी एजेंसी यह मानती है कि AI आपकी जगह ले सकता है, तो उसका मकसद सिर्फ मुनाफा है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में स्पाइनलेस और कायर कलाकारों का यही भविष्य है।” कश्यप ने यह तक कह डाला “विजय सुब्रमण्यम, आपको सिर्फ शर्म आनी चाहिए, बल्कि आपको गटर में होना चाहिए।”
विक्रमादित्य मोटवानी ने भी जताई नाराजगी
अनुराग कश्यप के पुराने दोस्त और सहयोगी विक्रमादित्य मोटवानी ने भी इस मुद्दे पर इंस्टाग्राम स्टोरी के जरिए अपनी नाखुशी जाहिर की। मोटवानी, जो पहले AI और उसके सामाजिक प्रभाव पर एक डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्ट का निर्देशन कर चुके हैं, ने लिखा “और तो और शुरुआत... जब फिल्म 'मेड इन एआई' हो, तो भला किसे लेखकों और निर्देशकों की जरूरत है।” यह व्यंग्यात्मक टिप्पणी सीधा-सीधा फिल्म निर्माताओं और प्रोडक्शन हाउस की ओर इशारा कर रही थी, जो मानवीय रचनात्मकता की जगह अब मशीनों पर निर्भर हो रहे हैं।
क्या AI इंसानों की जगह ले लेगा?
AI तकनीक के फिल्म निर्माण में प्रवेश से यह सवाल अब और गंभीर हो गया है कि क्या लेखकों, निर्देशकों और कलाकारों की जगह AI ले लेगा? अनुराग कश्यप जैसे वरिष्ठ फिल्मकारों की प्रतिक्रिया इस डर को और हवा देती है कि तकनीक के इस बढ़ते प्रभाव से मनुष्यों की कलात्मकता और आजीविका दोनों खतरे में पड़ सकती है। इस बहस का केंद्र यह है कि AI से बनी फिल्में भले ही तेज, सस्ती और व्यापक स्केल पर बनाई जा सकती हैं, लेकिन क्या वे वही भावनाएं, संवेदनाएं और रचनात्मक दृष्टिकोण ला सकती हैं जो एक इंसानी दिमाग और दिल से आते हैं?
प्रोडक्शन हाउस पर नैतिक सवाल
अबुंदंतिया एंटरटेनमेंट और कलेक्टिव मीडिया नेटवर्क जैसे प्रोडक्शन हाउसों पर अब नैतिक जिम्मेदारी का सवाल उठ रहा है। एक ओर जहां ये कंपनियां खुद को कलाकारों की हितैषी बताती हैं, वहीं दूसरी ओर उनका ऐसे प्रोजेक्ट्स में उतरना विरोधाभासी माना जा रहा है। अगर वही एजेंसियां जो कलाकारों का प्रतिनिधित्व करती हैं, अब AI को उनकी जगह दिलाने की कोशिश करें, तो यह न सिर्फ असुरक्षित माहौल बनाता है, बल्कि भविष्य में पूरी इंडस्ट्री की संरचना को बदल सकता है।
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