Patna: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सीट बंटवारे की कवायद तेज हो चुकी है और राजनीतिक दलों के बीच गहमा-गहमी बढ़ती जा रही है। खासतौर पर एनडीए के भीतर जेडीयू और एलजेपी के बीच विवाद ने राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया है। एनडीए के इस सीट बंटवारे के समझौते में जेडीयू और बीजेपी के बीच सीटों का वितरण बराबरी से हुआ था, लेकिन अब जेडीयू ने अपनी मजबूत सीटों पर एलजेपी के उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर दिया है, जिससे यह गठबंधन ही संकट में दिखने लगा है।
एनडीए का सीट शेयरिंग समझौता
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए गठबंधन के भीतर सबसे पहले सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय किया गया था। जेडीयू और बीजेपी दोनों ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति बनाई थी। इसके अलावा, बाकी 41 सीटें सहयोगी दलों में बांटी गईं, जिसमें चिराग पासवान की एलजेपी को 29 सीटें, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम (राइजिंग लेटरल मूवमेंट) और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को छह-छह सीटें मिली थीं।
क्या बिगाड़ा एनडीए का फॉर्मूला?
बुधवार को जेडीयू ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की। इस सूची में 57 उम्मीदवारों के नाम थे, जिनमें पांच सीटें ऐसी थीं, जिनके बारे में यह माना जा रहा था कि ये सीटें चिराग पासवान की एलजेपी के हिस्से में आईं थीं। यह 5 सीटें हैं: मोरवा, गायघाट, राजगीर, सोनबरसा और एकमा। जेडीयू ने इन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारकर यह संदेश दिया है कि वह किसी भी सूरत में अपनी मजबूत सीटों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
29 सीटों में से 5 सीटों पर जेडीयू का कब्जा
इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई, जब जेडीयू ने इन पांच सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की। राजगीर सीट पर मौजूदा विधायक कौशल किशोर और सोनबरसा सीट पर मंत्री रत्नेश सदा को टिकट दिया गया। इसके अलावा, जेडीयू ने एकमा सीट पर पूर्व विधायक धूमल सिंह, मोरवा सीट पर विद्यासागर निषाद, और गायघाट सीट पर कोमल सिंह को प्रत्याशी बनाया। यह पांचों सीटें पहले एलजेपी के कोटे में थीं, लेकिन जेडीयू ने इन सीटों को अपने हाथ में लेकर एनडीए के भीतर एक नई सियासी हलचल मचा दी।
जेडीयू और एलजेपी के बीच सीधा टकराव
चिराग पासवान की एलजेपी और जेडीयू के बीच सीटों को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। जेडीयू के इस कदम को एलजेपी और चिराग पासवान के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। दरअसल, जेडीयू का कहना है कि जब सीट शेयरिंग की बात पटना में चल रही थी, तब चिराग पासवान को 22 सीटें देने की बात हुई थी। लेकिन जैसे ही बातचीत का दौर दिल्ली में शिफ्ट हुआ, चिराग को 29 सीटें मिल गईं, और यह जेडीयू के लिए स्वीकार्य नहीं था।
जीतन राम मांझी का रुख
इस बीच, जीतनराम मांझी ने भी ऐलान किया है कि उनकी पार्टी मखदुमपुर सीट पर अपना उम्मीदवार उतारेगी, जिसे चिराग पासवान को दिया गया है। इस तरह से एनडीए के भीतर अब सीटों के बंटवारे को लेकर खुल्लम खुल्ला तकरार शुरू हो चुकी है। मांझी और कुशवाहा जैसे नेता इस सीट बंटवारे को लेकर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं, जिससे यह स्थिति और भी पेचीदा हो गई है।
चिराग की 29 सीटों पर जेडीयू और बीजेपी का कब्जा
एलजेपी ने जिन 29 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, उनमें से कई सीटें जेडीयू और बीजेपी के कब्जे में हैं। बीजेपी अपनी जीती हुई सीटों को छोड़ने के लिए तैयार हो सकती है, लेकिन जेडीयू के लिए यह संभव नहीं है। जेडीयू का तर्क है कि उसने पहले ही अपने विजय के प्रयासों में मेहनत की है और अब अपनी मजबूत सीटें किसी भी हालत में नहीं छोड़ सकता।
बीजेपी के लिए सियासी संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण
बीजेपी के लिए अब यह स्थिति और भी कठिन हो गई है, क्योंकि चिराग पासवान के साथ विवाद के बाद उसे यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा है कि वह किस पक्ष का समर्थन करे। बिहार के बीजेपी प्रभारी विनोद तावड़े ने पिछले एक साल में पार्टी के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने की कोशिश की थी, लेकिन अब यह सब ध्वस्त हो गया है। जेडीयू और चिराग पासवान के बीच विवाद ने बीजेपी के माथे पर पसीना ला दिया है।
जेडीयू और बीजेपी के भीतर अब क्या होगा?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जेडीयू और बीजेपी इस सियासी संकट से कैसे बाहर आएंगे। क्या दोनों दल एक बार फिर से समन्वय कर पाएंगे या फिर यह विवाद एनडीए के लिए एक बड़ा संकट बन जाएगा? यह देखते हुए, बीजेपी और जेडीयू दोनों को इस समस्या का हल निकालना होगा, ताकि आगामी चुनाव में गठबंधन को बनाए रखा जा सके।