चुनाव आयोग के वोटिंग टर्नआउट ऐप से कैसे मिलता है डेटा, जब नहीं है EVM में इंटरनेट; जानिए पूरा सिस्टम

बिहार चुनाव के दौरान वोटिंग टर्नआउट डेटा चुनाव आयोग तक कैसे पहुंचता है, यह सवाल कई लोगों के मन में था। पीठासीन अधिकारी ने बताया कि ऐप और फोन के माध्यम से यह डेटा चुनाव आयोग तक पहुँचता है। इस प्रक्रिया के जरिए आयोग को रियल टाइम अपडेट मिलता है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 9 November 2025, 2:10 PM IST
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New Delhi: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की मतदान प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और इस दौरान चुनाव आयोग के पास पूरे राज्य के मतदान डेटा की जानकारी लगातार पहुंच रही थी। पहले चरण में 121 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ, जबकि दूसरे चरण में 122 सीटों पर मतदान अभी बाकी है। हालांकि, सवाल यह उठता है कि लाखों वोटर्स और हजारों पोलिंग बूथों से चुनाव आयोग तक डेटा कैसे पहुंचता है, जबकि EVM मशीनें इंटरनेट से कनेक्टेड नहीं होतीं।

इस सवाल का जवाब पूर्व पीठासीन अधिकारी हिमांशु शुक्ला ने विस्तार से बताया कि चुनाव आयोग तक वोटिंग टर्नआउट डेटा पहुंचाने के लिए एक स्मार्ट और तेज़ प्रक्रिया अपनाई जाती है, जो पूरी तरह से ऑफलाइन होती है।

EVM और ऐप के माध्यम से डेटा का प्रवाह

हिमांशु शुक्ला बताते हैं कि EVM मशीनें इंटरनेट से कनेक्टेड नहीं होतीं, और वे अपने आप डेटा चुनाव आयोग को नहीं भेजतीं। मतदान प्रक्रिया शुरू होने से पहले चुनाव आयोग कर्मचारियों को एक विशेष ऐप (MPS App) की ट्रेनिंग देता है। इस ऐप के जरिए पीठासीन अधिकारी को पोलिंग बूथ पर सुबह 7 बजे मतदान शुरू होने की सूचना देनी होती है। इसके बाद, हर 2 घंटे में ऐप के जरिए मतदान का टर्नआउट डेटा भेजना होता है।

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इस ऐप को शुरू करने के लिए पीठासीन अधिकारी को एक विशेष APK फाइल दी जाती है, जो उन्हें उनके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर से लॉगिन करने का मौका देती है। लॉगिन करने के बाद, चुनाव आयोग की ओर से प्राप्त निर्देशों के तहत, उन्हें मतदान के दौरान महिलाओं और पुरुषों द्वारा डाले गए वोटों का डेटा भरना होता है। यह डेटा लगातार चुनाव आयोग तक पहुंचता है, जिससे चुनाव आयोग को मतदान के बारे में जानकारी मिलती रहती है और वह इसे वोटर टर्नआउट ऐप पर दर्शाता है।

फोन से डेटा का ट्रांसफर भी एक महत्वपूर्ण तरीका

हिमांशु शुक्ला ने यह भी बताया कि मतदान के दिन पीठासीन अधिकारी ऐप के अलावा एक और माध्यम से भी डेटा भेजते हैं। उन्हें सेक्टर मजिस्ट्रेट को भी हर 2 घंटे में वोटिंग टर्नआउट की रिपोर्ट करनी होती है। इसके लिए वे फोन का इस्तेमाल करते हैं और सेक्टर मजिस्ट्रेट को फोन करके मतदान की स्थिति की जानकारी देते हैं।

इस प्रक्रिया के जरिए मतदान का डेटा नियमित रूप से चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन तक पहुँचता है। यह सुनिश्चित करता है कि चुनाव आयोग को हर पोलिंग बूथ से रियल टाइम अपडेट मिलते रहें और मतदान प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी न हो।

डेटा में अंतर क्यों होता है?

जब चुनाव आयोग द्वारा फाइनल वोटिंग टर्नआउट डेटा जारी किया जाता है, तो कभी-कभी वह न्यूज चैनल्स द्वारा प्रसारित किए गए आंकड़ों से थोड़ा अलग हो सकता है। हिमांशु शुक्ला के अनुसार, यह अंतर उस समय के कारण होता है जब पोलिंग बूथ पर मतदान का समय खत्म होने के बाद भी कुछ वोटर्स लाइन में खड़े रहते हैं।

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"जब वोटिंग का समय समाप्त हो जाता है, तो जो वोटर लाइन में रहते हैं, उनका वोट भी डलवाया जाता है, भले ही मतदान समाप्त हो चुका हो।" इस वजह से कई बार पोलिंग बूथ पर वोटिंग 1-2 घंटे तक और चलती रहती है, जिससे मतदान के आंकड़े अपडेट करने में थोड़ी देरी हो जाती है। यही कारण है कि चुनाव आयोग के फाइनल आंकड़े में कभी-कभी शाम को दिखाए गए आंकड़ों से थोड़ा अंतर होता है।

चुनाव आयोग की प्रक्रिया की पारदर्शिता

चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और वैज्ञानिक है, जिससे चुनाव परिणामों में किसी प्रकार की अनियमितता का कोई स्थान नहीं रहता। EVM मशीनों से मतदान के आंकड़े सही समय पर और सही तरीके से चुनाव आयोग तक पहुँचते हैं, जिससे किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या चुनाव में धांधली की संभावना कम हो जाती है।

चुनाव आयोग के द्वारा अपनाए गए तकनीकी उपाय और कर्मचारियों की ट्रेनिंग सुनिश्चित करते हैं कि मतदान प्रक्रिया सुचारू रूप से चले और परिणामों में कोई हेरफेर न हो।

 

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 9 November 2025, 2:10 PM IST