New Delhi: दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश में चल रही सुरक्षा एजेंसियों की संयुक्त कार्रवाई में एक व्हाइट कॉलर आतंकी नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है। इस नेटवर्क में कथित रूप से शिक्षित पेशेवर, छात्र और कारोबारी शामिल थे जो आतंकियों को फंड, संसाधन और लॉजिस्टिक्स मुहैया करवा रहे थे। पुलिस और खुफिया सूत्रों के अनुसार, ये लोग सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड ऐप्स के ज़रिए कोड भाषा में बातचीत करते थे ताकि सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी से बच सकें।
धर्मार्थ कामों की आड़ में फंडिंग
जम्मू-कश्मीर पुलिस की रिपोर्ट बताती है कि यह मॉड्यूल सामाजिक और धर्मार्थ संस्थाओं की आड़ में पैसा जुटाने का काम करता था। पेशेवर वर्ग से जुड़े कुछ आरोपी बैंक ट्रांज़ेक्शन के ज़रिए ‘ह्यूमैनिटेरियन एड’ या ‘एजुकेशनल सपोर्ट’ के नाम पर फंड ट्रांसफर करते थे, जो बाद में आतंकी गतिविधियों में उपयोग होता था। पुलिस को शक है कि यह नेटवर्क पाकिस्तान और खाड़ी देशों में बैठे विदेशी हैंडलरों के संपर्क में था जो ऑनलाइन चैनलों से उन्हें गाइड करते थे।
दिल्ली ब्लास्ट से कनेक्शन
दिल्ली के लाल किले के पास हुए हालिया कार ब्लास्ट की जांच में यह नेटवर्क एक संभावित फंडिंग और सपोर्ट लिंक के रूप में उभरकर सामने आया है। जांच एजेंसियों का मानना है कि व्हाइट कॉलर मॉड्यूल न केवल धन और लॉजिस्टिक्स की व्यवस्था कर रहा था, बल्कि कुछ संदिग्ध आरोपी सीधे इस हमले की योजना में भी शामिल थे।
गनई से मिला सिलिकॉन मास्क और विग
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस मामले में एक अहम गिरफ्तारी की पुष्टि की है। आरोपी आतंकी गनई के पास से सिलिकॉन मास्क और विग बरामद किए गए हैं। जांच से यह संकेत मिला है कि वह या तो खुद वारदात को अंजाम देने वाला था या किसी अन्य व्यक्ति को भेष में भेजने वाला था। अधिकारियों ने बताया कि मास्क अत्याधुनिक क्वालिटी का था, जो चेहरे को पूरी तरह बदलने में सक्षम है। इससे सुरक्षा कैमरों को चकमा देने की साजिश का अंदेशा है।
नौगाम के पोस्टरों से उठा परदा
19 अक्टूबर को कश्मीर के बूनपोरा नौगाम इलाके में जैश-ए-मोहम्मद के धमकी भरे पोस्टर मिले थे। इनमें सुरक्षाबलों को चेतावनी दी गई थी। इन पोस्टरों के आधार पर UAPA, BNS और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया। शुरुआती जांच के बाद सुरक्षा एजेंसियों को अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय मॉड्यूल की कड़ियाँ मिलीं। अब यही जांच दिल्ली ब्लास्ट और हालिया फरीदाबाद बरामदगी से जुड़ गई है।
कैसे काम करता था यह नेटवर्क?
1. ऑनलाइन कोऑर्डिनेशन: कोड भाषा, ईमेल और एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म से संदेश भेजे जाते थे।
2. फिजिकल सपोर्ट: धन का हस्तांतरण, हथियार और विस्फोटक की व्यवस्था, और सुरक्षित ठिकानों की पहचान करना।
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बरामदगी और विस्फोटक की भूमिका
फरीदाबाद, जम्मू और दिल्ली से अब तक सैकड़ों किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट, टाइमर, बैटरियां, वॉकी-टॉकी, और कई हथियार बरामद किए जा चुके हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इतनी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट से सैकड़ों IED तैयार किए जा सकते थे।
अमोनियम नाइट्रेट सफेद पाउडर जैसा रासायनिक पदार्थ है जिसे आमतौर पर खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। लेकिन डेटोनेटर, बैटरी और टाइमर से जोड़कर यह अत्यधिक घातक बन जाता है। स्थानीय आतंकी मॉड्यूल अक्सर इसे सस्ते और सुलभ विस्फोटक के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
पुराने हमलों से मेल खाती तकनीक
• 2008 दिल्ली सीरियल ब्लास्ट: 25 मौतें, 100 से अधिक घायल- अमोनियम नाइट्रेट का उपयोग।
• 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले ब्लास्ट- वही रासायनिक पैटर्न।
• 2011 मुंबई बाजार धमाके- 23 मौतें, समान विस्फोटक सूत्र।
केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता
एनआईए, एनएसजी, दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल, खुफिया ब्यूरो और यूपी एटीएस मिलकर इस मामले की तहकीकात कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्रालय ने इस पूरे नेटवर्क को “हाई प्रायोरिटी केस” के रूप में चिन्हित किया है। वहीं अमेरिकी खुफिया एजेंसी से भी तकनीकी सहायता की पेशकश की गई है।

