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1 करोड़ सदस्यों के दावे के बावजूद पार्टी को 10 लाख वोट भी न मिल सके। यह हार सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि उन दावों के ढहने की कहानी है जिन्हें पीके ने महीनों तक दोहराया था। पीके कहां चूके, जनसुराज क्यों फेल हुआ, और क्या अब प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति से गायब हो जाएंगे?
जनसुराज की करारी हार का पूरा पोस्टमॉर्टम
Patna: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सबसे ज़्यादा चर्चा अगर किसी नेता पर रही, तो वह थे प्रशांत किशोर रणनीति के उस्ताद, चुनावी मैनेजमेंट के महारथी और जनसुराज पार्टी के सूत्रधार। 6 साल में 6 मुख्यमंत्री बनवाने का दावा करने वाले पीके जब खुद चुनावी मैदान में उतरे तो नतीजे चौंकाने वाले रहे। 238 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली जनसुराज पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी, और 98% सीटों पर जमानत ज़ब्त हो गई।
1 करोड़ सदस्यों के दावे के बावजूद पार्टी को 10 लाख वोट भी न मिल सके। यह हार सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि उन दावों के ढहने की कहानी है जिन्हें पीके ने महीनों तक दोहराया था। पीके कहां चूके, जनसुराज क्यों फेल हुआ, और क्या अब प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति से गायब हो जाएंगे?
बीते 6 महीनों में प्रशांत किशोर ने बार-बार कहा NDA और जनसुराज के बीच मुकाबला है। JDU 25 से कम सीटें जीतेगी। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे और जनसुराज इतिहास रच देगा लेकिन नतीजा इसके बिल्कुल उलटा निकला। NDA ने 200 सीटों पर जीत दर्ज की, JDU 80 सीटों पर पहुंच गई, और जनसुराज खाता तक न खोल सका। यानी दावा और धरातल में जमीन-आसमान का फर्क उजागर हो गया।
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पीके बार-बार 1 करोड़ सदस्यों का दावा करते रहे, लेकिन वोट मात्र 2% मिले। यह साफ हो गया कि सदस्यता अभियान भीड़ तो इकट्ठा कर सका, लेकिन उन्हें मतदाता में बदलने में पार्टी बिल्कुल असफल रही। रोहतास उनके अपने जिले की 7 सीटों पर भी जमानत नहीं बच सकी, यह पीके की सबसे बड़ी व्यक्तिगत राजनीतिक हार साबित हुई।
पीके साफ-सुथरी राजनीति की बात करते थे। लेकिन सामने आई रिपोर्ट ने उनका दावा ही काट दिया है। 231 में से 108 प्रत्याशी अपराधी मामलों में आरोपी 100 पर गंभीर केस 25 पर हत्या के प्रयास 12 पर हत्या का आरोप 14 पर महिलाओं पर अत्याचार के मामले। साफ दिखा कि जनसुराज ने वही पुराने राजनीतिक चेहरों पर भरोसा किया।
पीके कहते थे “महागठबंधन लड़ाई में नहीं है, मुकाबला NDA और जनसुराज का होगा।” हकीकत जनसुराज लड़ाई में कहीं नहीं था। वास्तविक मुकाबला NDA बनाम महागठबंधन ही रहा।
पीके ने कहा था अगर JDU 25 से ज्यादा सीट लाई तो राजनीति छोड़ दूंगा 130 सीटें मिलीं तब भी हार मानूंगा अब जबकि JDU 80 पर है और जनसुराज 0 पर, बड़ा सवाल यही है क्या प्रशांत किशोर अब राजनीति छोड़ देंगे? क्या जनसुराज का सफर यहीं खत्म?
पीके की सबसे बड़ी हार रणनीति सत्ता नहीं बनाती, जमीन बनाती है। प्रशांत किशोर पहली बार खुद चुनावी मैदान में उतरे और यह चुनाव साबित कर गया कि चुनावी रणनीति और चुनाव लड़ने की राजनीति दो बिल्कुल अलग चीजें हैं। जनसुराज की करारी हार ने दिखा दिया कि जनता दावों नहीं, काम और विश्वास को वोट देती है। अब सभी की नजर इस पर है कि पीके क्या अगला कदम उठाते हैं सियासत छोड़ेंगे या फिर वापसी की नई रणनीति बनाएंगे?