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दुबई पहुंचा उत्तराखंड का किंग रोट: पहाड़ी बागवानी का नया सूर्योदय, जानें इसकी खासियत

उत्तराखंड के गढ़वाल से पहली बार  किंग रोट सेब की खेप दुबई पहुंची है। गहरे लाल और मीठे स्वाद वाला यह सेब अब राज्य की ब्रांड पहचान बनता जा रहा है। स्थानीय किसान आधुनिक तकनीक से खेती कर रहे हैं। जिससे उत्पादन बढ़ा और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच संभव हुई। यह उपलब्धि उत्तराखंड की कृषि क्षमता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का नया प्रमाण है।
Post Published By: Mayank Tawer
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दुबई पहुंचा उत्तराखंड का किंग रोट: पहाड़ी बागवानी का नया सूर्योदय, जानें इसकी खासियत

Uttrakhand: उत्तराखंड के गढ़वाल इलाके से हाल ही में किंग रोट सेब की खेप दुबई भेजी गई। यह खबर राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर कही जा सकती है। अब तक सेब की चर्चा आते ही जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश का नाम लिया जाता था, लेकिन उत्तराखंड के सेब का अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना ‘नए सूर्योदय’ जैसा है। यह न सिर्फ पहाड़ी कृषि की क्षमता और गुणवत्ता का प्रमाण है, बल्कि ब्रांड वैल्यू बनाने की दिशा में भी बड़ा कदम है।
किंग रोट: स्वाद और पहचान
स्थानीय स्तर पर किंग रोट को किंग रोटा या रॉयल किंग के नाम से जाना जाता है। गहरे लाल रंग, मध्यम से बड़े आकार, पतले लेकिन सख्त छिलके और संतुलित मिठास वाले इस सेब में प्राकृतिक एरोमा और बेहतरीन शुगर-बैलेंस होता है। यही कारण है कि यह ताजे सेवन और प्रीमियम रिटेल दोनों के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसकी संग्रहण क्षमता अच्छी होने के कारण यह लंबे ट्रांजिट के बाद भी गुणवत्ता बनाए रखता है। दुबई जैसे गर्म और हाई-वैल्यू मार्केट में इसकी बढ़ती मांग इसी की गवाही देती है।
पैदावार और कीमत
उत्तराखंड के मिड-हिल्स में 1,500-2,500 मीटर की ऊंचाई पर किंग रोट की तुड़ाई अगस्त से अक्टूबर तक होती है। फूल मार्च-अप्रैल में आते हैं और फल सितंबर तक पक जाते हैं। उत्तरकाशी के किसान जगमोहन राणा बताते हैं कि किसानों को सही कीमत मिलना अभी भी चुनौती है। जहां स्थानीय बाजार में यह 50-100 रुपये किलो तक बिकता है, वहीं दिल्ली-एनसीआर में यही सेब 200–250 रुपये किलो तक पहुंच जाता है। यानी कीमत स्थान, ग्रेडिंग और प्रोसेसिंग के आधार पर बदलती रहती है।
पैदावार के लिए जरूरी शर्तें
सेब की खेती के लिए 600-1,000 घंटे की ठंड यानी चिलिंग आवर्स जरूरी होते हैं। यह केवल ऊँचाई वाले इलाकों में संभव है।
खेती की तकनीकी जरूरतें
सेब की सफल खेती के लिए संतुलित मौसम, ड्रेनेज वाली मिट्टी, ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग बेहद जरूरी हैं। क्रॉस-पॉलिनेशन के लिए पोलिनाइज़र किस्में और मधुमक्खी बक्से लगाने से उत्पादन बढ़ता है। साथ ही, कैल्शियम स्प्रे और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग सेब की गुणवत्ता को बेहतर बनाता है।
देश में सेब उत्पादन
देशभर में 3.26 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर सेब की खेती होती है, जिससे लगभग 22.5 लाख टन उत्पादन होता है। प्रमुख किस्मों में Red Delicious, Royal Delicious, Golden Delicious, Gala, Fuji, Granny Smith और Ambri शामिल हैं। उत्तराखंड में करीब 11,300 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर सेब की खेती हो रही है और 2022-23 में कुल उत्पादन 65,000 टन दर्ज हुआ। खास बात यह है कि यहां का सेब हिमाचल की तुलना में करीब 20 दिन पहले बाजार में आ जाता है, जिससे किसानों को अर्ली क्रॉप का फायदा मिलता है।
भारत का सेब निर्यात
भारत मूलतः सेब का बड़ा उपभोक्ता है और यहां आयात भी काफी होता है। लेकिन अब निर्यात में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। भारतीय सेब की खेप यूएई, सऊदी अरब, कतर, ओमान, बहरीन, कुवैत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर और कुछ अफ्रीकी देशों तक पहुंचती है। किन्नौर, कश्मीर और अब गढ़वाल का किंग रोट इस सूची में खास पहचान बना रहा है।
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