

उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं मंडल में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर श्रवण मास में शिव भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाता है। समुद्र तल से करीब 1350 मीटर की ऊँचाई पर, पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट कस्बे के समीप यह गुफा हजारों वर्षों से अपनी रहस्यमयी संरचना और पौराणिक मान्यताओं के कारण भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित कर रही है।
श्रावण का चमत्कारी तीर्थ
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, पौराणिक मान्यता है कि पाताल भुवनेश्वर में स्वयं भगवान शिव अपनी गुप्त लीलाओं के साथ निवास करते हैं। स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार त्रेता युग में राजा ऋतुर्पर्ण ने पहली बार इस गुफा के दर्शन किए थे। कहा जाता है कि यहां भगवान शेषनाग ने पाताल लोक के द्वार खोले और इसी गुफा में चारों धामों के प्रतीक स्वरूप दर्शन होते हैं। शिवलिंग के अलावा इस गुफा में अनेक देवी-देवताओं की प्राकृतिक आकृतियां चट्टानों पर उकेरी हुई मिलती हैं, जो चमत्कारी रूप से सदियों से वैसी की वैसी बनी हुई हैं।
श्रवण मास में हजारों शिवभक्त दूर-दूर से यहां पहुंचकर गुफा में बने प्राकृतिक शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि इस पवित्र गुफा के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। यही कारण है कि कांवड़ यात्रा की तरह ही कई श्रद्धालु श्रवण मास में यहां जल लेकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं।
पाताल भुवनेश्वर की गुफा में प्रवेश करने पर भक्तों को ऐसा प्रतीत होता है मानो वे पाताल लोक में उतर रहे हों। गुफा की लंबाई करीब 160 मीटर और गहराई 90 फीट बताई जाती है। अंदर जाने के लिए संकरी और फिसलन भरी सीढ़ियां हैं, जो अपने आप में एक रोमांचक अनुभव देती हैं। गुफा के भीतर जगह-जगह जलकुंड और चूना-पत्थर से बनी आकृतियां अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती हैं।
स्थानीय प्रशासन श्रवण मास में भक्तों की सुविधा के लिए विशेष व्यवस्थाएं करता है। बिजली, सुरक्षा और मार्गदर्शन के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं ताकि भक्तजन बिना किसी बाधा के दर्शन कर सकें। पाताल भुवनेश्वर आज भी अपने भीतर हजारों रहस्य समेटे हुए है और श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक अपूर्व केंद्र बना हुआ है।