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Butter Festival: उत्तरकाशी में धूमधाम से मनाया गया अंडुड़ी मेला, ग्रामीणों ने खेली दूध-दही-मक्खन की होली

उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल में अंडुड़ी मेला बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर ग्रामीणों ने दूध-मक्खन की होली खेली और ढोल-दमाऊं की थाप पर रासो-तांदी नृत्य किया।
Post Published By: Jay Chauhan
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Butter Festival: उत्तरकाशी में धूमधाम से मनाया गया अंडुड़ी मेला, ग्रामीणों ने खेली दूध-दही-मक्खन की होली

Uttarkashi: जनपद के दयारा बुग्याल में अंडुड़ी मेला (बटर फेस्टिवल) बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। इस बार यह मेला धराली आपदा के कारण 20 दिन बाद मनाया गया। इस दौरान देर शाम को रैथल में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। साथ ही इससे पूर्व शुक्रवार शाम को धराली आपदा में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।

इस महोत्सव में ग्रामीणों ने दूध-दही, मक्खन की होली खेली। वहीं राधा-कृष्ण बने पात्रों ने दही की हांडी को फोड़कर ग्रामीणों को आशीर्वाद दिया। साथ ही दूध-दही वन देवियों और देवताओं को भोग लगाया गया।

बटर फैस्टिवल मनाते ग्रामीण

गौरतलब है कि दयारा बुग्याल में हर वर्ष दयारा पर्यटन समिति, रैथल और आसपास के ग्रामीणों की ओर से भाद्रपद की संक्रांति के दिन यह उत्सव मनाया जाता है लेकिन इस वर्ष धराली आपदा के कारण इसके समय और तिथि में बदलाव किया गया।

वन देवियों और देवताओं को लगाया जाता है भोग

इस मौके पर ग्रामीण बुग्यालों में परंपरा के अनुसार वन देवियों और अपने आराध्य देवता को दूध, दही मक्खन की भोग लगाते हैं और ढोल दमांऊ की थाप पर रासो तांदी नृत्य का आयोजन किया जाता है।

दयारा बुग्याल में बटर फैस्टिवल मनाते ग्रामीण

धराली आपदा के चलते सादगी से मनाया गया उत्सव

दयारा पर्यटन उत्सव समिति के अध्यक्ष मनोज राणा और सदस्य पृथ्वीराज राणा ने बताया कि इस बार धराली आपदा के चलते अढूंडी उत्सव सादगी से मनाया गया। इसलिए इस बार दयारा बुग्याल में कम संख्या में ही ग्रामीण मौजूद रहे।

मनोज राणा ने बताया कि ग्रामीणों ने संक्रांति से करीब 20 दिन बाद मेला मनाया। सावन में बुग्यालों में मवेशियों के साथ ग्रामीण दूध-दही, मक्खन एकत्रित करते हैं। इसके बाद शनिवार को दही ही हांडी तैयार की गई जिसे कृष्ण-राधा के पात्रों ने तोड़कर अंडुड़ी का शुभारंभ किया।

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इसके बाद ग्रामीणों ने दूध-दही की होली खेली। मवेशियों और क्षेत्र की खुशहाली की कामना की। इस मौके पर ढोल-दमाऊं की थाप पर रासो-तांदी किया गया। ग्रामीण बुग्यालों में परंपरा के अनुसार वनदेवियों और अपने आराध्य देवता को भी दूध, दही, मक्खन का भोग लगाया। और इसके बाद दूध,दही और मक्खन की होली खेली।

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