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Gorakhpur News: शैरो में घोड़ा रेस से पहले बढ़ा तनाव, परंपरा की धरती पर वर्चस्व की दस्तक

गोरखपुर के बांसगांव क्षेत्र के शैरो गांव में हुई घोड़ा रेस अब वर्चस्व की जंग में बदलती दिख रही है। स्थानीय स्तर पर बढ़ती प्रतिस्पर्धा से तनाव का माहौल बन गया है। लोगों को आशंका है कि यदि स्थिति संभाली न गई तो दक्षिणांचल में बड़ी चिंगारी भड़क सकती है।
Post Published By: Poonam Rajput
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Gorakhpur News: शैरो में घोड़ा रेस से पहले बढ़ा तनाव, परंपरा की धरती पर वर्चस्व की दस्तक

Gorakhpur: बांसगांव थाना क्षेत्र के शैरो गांव में 9 नवम्बर दिन रविवार को होने वाली पारंपरिक घोड़ा रेस इस बार सामान्य ग्रामीण उत्सव नहीं रह गई है। गांव में तैयारियां भले ही खेल और परंपरा के नाम पर हो रही हों, पर स्थानीय माहौल संकेत दे रहा है कि यह रेस दो पक्षों के बीच वर्चस्व की सीधी मुकाबला-भूमि बन सकती है।

हाल के दिनों में गोला और खजनी क्षेत्र में हुए विवादों और सोशल मीडिया पर जारी चुनौतीपूर्ण वीडियो के कारण यह आयोजन संवेदनशील हो चुका है। प्रशासन यदि शुरुआत से कड़ा रवैया नहीं अपनाता, तो यह रेस तनाव का बड़ा रूप ले सकती है।

दहशत और अशांति का वातावरण

कुछ समय पहले गोला क्षेत्र में दुर्गेश यादव के नेतृत्व में 108 कन्याओं का भव्य सामूहिक विवाह कार्यक्रम हुआ था। कार्यक्रम विवादों के बीच पूरा जरूर हो गया, पर मारपीट और विवाद का आपसी रंजिश का असर दिखाई देने लगा था। बाद में यह मतभेद सोशल मीडिया पर सक्रिय हो उठा। दोनों पक्षों ने लगातार रील और वीडियो जारी करके एक-दूसरे को चुनौती देना शुरू किया। वीडियो में फिल्मी अंदाज के डायलॉग, गोलियों की आवाजें, हथियारों के प्रदर्शन और प्रतिशोध की खुली चेतावनियों जैसे दृश्य देखने को मिले। इसने इलाके में दहशत और अशांति का वातावरण बना दिया।

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समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन

इसी माहौल में खजनी क्षेत्र में दोनों गुटों ने समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन किया। स्थिति बिगड़ने की पूरी संभावना थी, पर खजनी पुलिस की तत्परता ने बड़ी घटना को टाल दिया।

हालांकि तनाव की चिंगारी बुझी नहीं, बल्कि अब शैरो गांव में होने वाली घोड़ा रेस उसी चिंगारी को हवा देने का माध्यम बन रही है। ग्रामीणों का कहना है कि इस रेस में केवल घोड़े नहीं दौड़ेंगे, बल्कि प्रतिष्ठा और शक्ति की परख भी होगी।

खुफिया इनपुट मजबूत

स्थानीय नागरिकों ने स्पष्ट कहा है कि पुलिस प्रशासन को इस आयोजन को सामान्य सांस्कृतिक कार्यक्रम समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। भारी पुलिस बल की तैनाती, बाहरी लोगों की निगरानी और सोशल मीडिया पर नजर बेहद जरूरी है। ग्रामस्तर से लेकर चौकी स्तर तक खुफिया इनपुट मजबूत होने चाहिए।

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स्थिति स्पष्ट रूप से संवेदनशील है। घोड़ा रेस यदि शांति और परंपरा में आयोजित हो तो यह ग्रामीण गर्व का प्रतीक बनती है, पर यदि इसे प्रतिशोध की परीक्षा में बदलने दिया गया तो परिणाम दूरगामी और नुकसानदेह होंगे। प्रशासन के लिए यह समय सजगता और दृढ़ता दिखाने का है।

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