

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दंपति के नाबालिग बच्चे के पालन-पोषण की जिम्मेदारी से पति पीछे नहीं हट सकता। न्यायालय ने कहा कि बच्चे का अधिकार सर्वोपरि है और उसे जीवन के हर जरूरी संसाधन उपलब्ध करवाना माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी है।
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Lucknow: पारिवारिक विवादों में एक अहम मोड़ लाते हुए लखनऊ हाईकोर्ट की एकल पीठ ने साफ कर दिया है कि यदि पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है और अच्छी आमदनी कर रही है तो उसे पति से गुजारा भत्ता (maintenance) मिलने का हक नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
यह ऐतिहासिक फैसला न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की पीठ ने उस समय सुनाया, जब एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर पति ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। पारिवारिक अदालत ने पति को आदेश दिया था कि वह अपनी पत्नी को हर महीने 15,000 रुपये भरण-पोषण के तौर पर दे, लेकिन याचिकाकर्ता पति ने अदालत को बताया कि उसकी पत्नी भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और वह 73,000 रुपये प्रतिमाह कमा रही है। इतना ही नहीं पत्नी ने लखनऊ के बख्शी का तालाब इलाके में 80 लाख रुपये से अधिक मूल्य का फ्लैट भी खुद के नाम पर खरीदा है। वहीं पति की आय 1.75 लाख रुपये प्रतिमाह है।
कोर्ट ने और क्या कहा?
पति की ओर से दलील दी गई कि जब पत्नी आर्थिक रूप से सक्षम है और स्वयं के खर्चे उठा सकती है तो भरण-पोषण की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि "भरण-पोषण का उद्देश्य उस व्यक्ति को मदद देना है, जो अपने खर्च स्वयं वहन नहीं कर सकता। अगर पत्नी अच्छी आमदनी कर रही है, तो वह इस श्रेणी में नहीं आती।"
सिर्फ बच्चे के पति देगा पैसा
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दंपति के नाबालिग बच्चे के पालन-पोषण की जिम्मेदारी से पति पीछे नहीं हट सकता। न्यायालय ने कहा कि बच्चे का अधिकार सर्वोपरि है और उसे जीवन के हर जरूरी संसाधन उपलब्ध करवाना माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी है। इसी आधार पर कोर्ट ने आदेश दिया कि पति हर महीने 25,000 रुपये अपने नाबालिग बच्चे के पालन-पोषण के लिए देगा।
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किसने सुनाया फैसला?
न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया ने अपने फैसले में कहा कि पत्नी को दिए गए भरण-पोषण का आदेश त्रुटिपूर्ण था और इसे रद्द किया जाता है। लेकिन बच्चे के लिए भरण-पोषण देना पति की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है।
कानूनी दृष्टिकोण से अहम फैसला
इस फैसले को कानूनी विशेषज्ञ भविष्य में आने वाले पारिवारिक विवादों के लिए एक मिसाल के तौर पर देख रहे हैं। खासकर उन मामलों में जहां पत्नी खुद अच्छी आमदनी कर रही हो, वहां पति को गैरजरूरी भरण-पोषण से राहत मिल सकती है।