मकर संक्रांति के अवसर पर गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ मंदिर में इस वर्ष भी विशाल खिचड़ी मेले की तैयारियां जोरों पर हैं। योग और भक्ति के प्रतीक महायोगी गोरखनाथ की स्मृति में हर साल लाखों श्रद्धालु यहां खिचड़ी अर्पित करते हैं। यह परंपरा धार्मिक आस्था का केंद्र है।

बाबा गोरखनाथ मंदिर
Gorakhpur: मकर संक्रांति नजदीक है और इसके साथ ही गोरखपुर में तैयारियां तेज हो चुकी हैं। उत्तर भारत में मकर संक्रांति जहां धार्मिक पर्व के रूप में मनाई जाती है, वहीं गोरखपुर में इसका एक अलग ही स्वरूप देखने को मिलता है। यहां यह पर्व बाबा गोरखनाथ के प्रति श्रद्धा, भक्ति और लोकसमन्वय की परंपरा से जुड़ा हुआ है। हर वर्ष की तरह इस बार भी गोरखनाथ मंदिर परिसर में विशाल खिचड़ी मेला आयोजित होगा, जिसके लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, नाथ पंथ के शिखर पुरुष और सिद्ध योगी बाबा गोरखनाथ ने अध्यात्म, योग और संयम को जनजीवन से जोड़ने का कार्य किया। उनके गुरु महायोगी मत्स्येन्द्रनाथ ने उन्हें नाथ संप्रदाय की परंपरा आगे बढ़ाने का दायित्व दिया। बाबा गोरखनाथ ने सिर्फ साधना ही नहीं की, बल्कि उसे समाज और सामान्य जीवन से जोड़ा। इसी कारण उन्हें हठयोग का आधार स्तंभ माना जाता है।
उनके द्वारा रचित ग्रंथ सबदी, पद, शिष्यादर्शन, प्राण-सांकली, नरवै बोध और आत्मबोध आज भी साधकों को मार्ग दिखाते हैं। इन ग्रंथों में शरीर, प्राण, अनुशासन और आत्मविकास की गहन व्याख्या मिलती है। यह शिक्षाएं आज भी योग और ध्यान के अभ्यास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
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गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा का केंद्र है। मंदिर परिसर में प्रतिदिन हजारों भक्त पूजा, आरती और दर्शन के लिए आते हैं। पर्वों के अवसर पर यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है।
दरअसल, यहां मान्यता है कि त्रेता युग में गोरखनाथ बाबा साधना के दौरान भिक्षाटन करते थे और उसी से प्रेरित होकर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई। आज यह परंपरा विश्व-स्तरीय धार्मिक आयोजन का स्वरूप ले चुकी है।
1 जनवरी से गोरखनाथ मंदिर परिसर और उसके आसपास मेले की हलचल शुरू हो जाती है, लेकिन 14 जनवरी (मकर संक्रांति) को मुख्य खिचड़ी चढ़ाई जाती है। श्रद्धालु खिचड़ी अर्पित कर वर्षभर की सुख-समृद्धि और कल्याण की कामना करते हैं।
इस वर्ष भी प्रशासन, मंदिर प्रबंधन और स्थानीय संगठनों द्वारा मेले को सुचारु चलाने की तैयारियां जारी हैं। सुरक्षा, पार्किंग, यातायात और व्यवस्थाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि भक्तों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
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इतिहासकारों का मत है कि जिस स्थान पर बाबा गोरखनाथ ने साधना की, वह क्षेत्र गोरखपुर कहलाया। यह शहर सिर्फ भूगोल नहीं बल्कि आध्यात्मिक पहचान है। यहाँ की सांस्कृतिक ऊर्जा, लोकविश्वास और भक्ति परंपरा सदियों से जीवित है
बाबा गोरखनाथ केवल एक संत नहीं, बल्कि जीवन को योग, अनुशासन और आत्मबोध की दिशा देने वाले महायोगी थे। मकर संक्रांति और खिचड़ी मेला उनके संदेश, लोकसंपर्क और आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक है। आने वाले दिनों में गोरखपुर एक बार फिर श्रद्धा, अध्यात्म और सांस्कृतिक एकता के विशाल संगम का साक्षी बनने जा रहा है।