

नेपाल इस समय एक अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है। राजधानी काठमांडू से आज जो तस्वीरें सामने आईं, वे किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए चेतावनी की घंटी हैं। सरकार के सामने बड़ी चुनौती यही है कि वह हिंसा को रोके, जनता को विश्वास में ले और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो…देखें पूरा सटीक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ
नई दिल्ली: नेपाल इस समय एक अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है। सोमवार से शुरू हुई हिंसा ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंध ने जनता खासकर युवाओं में गहरा आक्रोश पैदा कर दिया है। देखते ही देखते यह विरोध इतना हिंसक हो गया कि सड़कों पर पुलिस और जनता आमने-सामने खड़े हो गए। हालात इतने बिगड़े कि संसद भवन तक प्रदर्शनकारी पहुंच गए और वहां तोड़फोड़ शुरू कर दी। पुलिस को रोकने के लिए लाठीचार्ज, आंसू गैस और आखिरकार गोलियों का सहारा लेना पड़ा। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अब तक 16 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि सौ से अधिक लोग घायल हैं। इनमें पत्रकार और सुरक्षा बलों के जवान भी शामिल हैं।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में नेपल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद भड़की हिंसा पर सटीक विश्लेषण किया ।
नेपाल की राजधानी काठमांडू से आज जो तस्वीरें सामने आईं, वे किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए चेतावनी की घंटी हैं। संसद भवन की दीवारें लांघते युवा, पुलिस के साथ झड़पें, कर्फ्यू, आगजनी और हताहतों की बढ़ती संख्या, यह सबकुछ देखकर सवाल उठ रहा है कि आखिर इस आग की चिंगारी कहां से उठी? नेपाल में जो कुछ भी हुआ, वह बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान की जीरॉक्स कॉपी जैसा दिख रहा है। सब जगह हिंसा या विद्रोह भड़कने की वजह कहीं न कहीं सोशल मीडिया थी। नेपाल में विद्रोह की वजह भी सोशल मीडिया बैन है। सरकार के फैसले ने युवाओं में गुस्सा भर दिया और देखते-देखते सड़कों पर भीड़ उमड़ पड़ी। अब चर्चा यह है कि बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान और अब नेपाल, चारों जगह एक जैसी तस्वीरें क्यों दिख रही हैं? क्या सोशल मीडिया कंपनियां इतनी ताकतवर हो चुकी हैं कि वे किसी भी देश की राजनीति को झकझोर दें, यहां तक कि सत्ता पलट की स्थिति बना दें? नेपाल में चल रहे इस आंदोलन को लोग ‘Gen-Z रिवोल्यूशन’ कह रहे हैं। वजह साफ है, इसकी अगुवाई युवा और छात्र कर रहे हैं। सरकार ने फेसबुक, ट्विटर यानी एक्स, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और यूट्यूब समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगा दिया। बस फिर क्या था, गुस्साए युवाओं ने इसे अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया और सड़कों पर उतर आए।
SSB यानी सशस्त्र सीमा बल ने गश्त बढ़ा
नेपाल सरकार ने हालात काबू करने के लिए कई जिलों में कर्फ्यू लगा दिया है, इंटरनेट सेवाएं ठप कर दी गई हैं और सेना को भी तैनात किया गया है। राजधानी काठमांडू, पोखरा, विराटनगर और तराई के कई जिलों में सेना गश्त कर रही है। प्रधानमंत्री निवास और राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। नेपाल-भारत सीमा पर भी चौकसी तेज कर दी गई है। भारत की ओर से SSB यानी सशस्त्र सीमा बल ने गश्त बढ़ा दी है ताकि हिंसा का असर सीमा पार न पहुंचे। खबर यह भी है कि नेपाल में हिंसा और तनाव को देखते हुए बिहार के सात जिलों में बॉर्डर सील कर दिया गया है। स्थानीय कारोबारियों ने चिंता जताई है कि उनका व्यापार पूरी तरह सोशल मीडिया और खासकर व्हाट्सएप पर निर्भर था, और अब बैन की वजह से उनकी रोज़ी-रोटी प्रभावित हो रही है।
आंदोलन में युवा तबका सबसे ज्यादा आक्रामक
दरअसल, नेपाल सरकार ने 4 सितंबर को एक अधिसूचना जारी कर यह प्रतिबंध लागू किया था। सरकार का तर्क है कि इन सोशल मीडिया कंपनियों ने नेपाल में रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है और यह प्लेटफॉर्म अफवाह फैलाने, धार्मिक विद्वेष भड़काने और राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का जरिया बन चुके हैं। सरकार के अनुसार इस कदम से शांति-व्यवस्था बनाए रखने में मदद मिलेगी। लेकिन जनता को यह तर्क स्वीकार नहीं हुआ। सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन या संवाद का साधन नहीं है, बल्कि नेपाल के युवाओं के लिए यह रोजगार और पढ़ाई का भी बड़ा जरिया है। बहुत से लोग डिजिटल मार्केटिंग, कंटेंट क्रिएशन और ऑनलाइन बिजनेस के जरिए अपनी जीविका चलाते हैं। अचानक इस पर रोक लगने से उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है। यही वजह है कि आंदोलन में युवा तबका सबसे ज्यादा आक्रामक दिखाई दे रहा है।
सरकार लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचल रही...
नेपाल की राजनीति की पृष्ठभूमि समझना भी जरूरी है। 2006 में राजशाही का अंत हुआ और नेपाल एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बना। तब से लेकर अब तक यहां लगातार राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। बार-बार सरकारें गिरती रही हैं। पिछले 18 सालों में 13 से ज्यादा प्रधानमंत्री बदल चुके हैं। प्रचंड यानी पुष्पकमल दहल तीन बार प्रधानमंत्री बने हैं, लेकिन हर बार उनकी सरकार विवादों और अस्थिरता में घिरी रही। इस पृष्ठभूमि में सोशल मीडिया बैन ने जनता को यह संदेश दिया कि सरकार लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचल रही है। यही वजह है कि विरोध इतना उग्र हो गया।
पर्यटन स्थलों पर हिंसा और सुरक्षा
नेपाल की अर्थव्यवस्था पहले ही कमजोर हालत में है। यह देश पर्यटन, छोटे व्यवसायों और प्रवासी नेपाली नागरिकों से आने वाले पैसों पर निर्भर करता है। लेकिन इस समय अशांति और कर्फ्यू जैसी परिस्थितियों ने पर्यटन उद्योग को गहरा झटका दिया है। काठमांडू और पोखरा जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों पर हिंसा और सुरक्षा बंदोबस्त की वजह से विदेशी पर्यटक आने से बचेंगे। इसका सीधा असर नेपाल की अर्थव्यवस्था और रोजगार पर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नेपाल की छवि धूमिल हो रही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र को दबाने के आरोप खुले तौर पर लग रहे हैं। मानवाधिकार संगठन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय नेपाल सरकार से जवाब मांग सकते हैं। भारत और चीन जैसे पड़ोसी देशों के लिए भी नेपाल का स्थिर रहना बहुत जरूरी है क्योंकि यह दोनों देशों के बीच बसा एक रणनीतिक रूप से अहम पड़ोसी है। भारत के लिए नेपाल का महत्व और भी खास है क्योंकि दोनों देशों के बीच खुली सीमा है। लाखों नेपाली भारत में काम करते हैं और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक रिश्ते हैं। नेपाल में हिंसा और अस्थिरता भारत के लिए भी चिंता का विषय है। यही कारण है कि भारत ने अपनी सीमा पर अलर्ट जारी किया है।
क्या सोशल मीडिया कंपनियां इतनी मजबूत
इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या सोशल मीडिया कंपनियां इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि वे किसी भी देश की राजनीतिक स्थिरता को हिला सकती हैं? बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान और अब नेपाल — चारों जगह तस्वीर लगभग एक जैसी है। कहीं आर्थिक संकट, कहीं राजनीतिक विद्रोह, और हर जगह सोशल मीडिया का बड़ा रोल। यह चर्चा अब जोर पकड़ रही है कि क्या डिजिटल युग में सोशल मीडिया कंपनियां किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती दे सकती हैं, यहां तक कि सत्ता परिवर्तन का कारण बन सकती हैं।
नेपाल सरकार के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया बैन और उसके बाद हुए दमन ने सरकार और जनता के बीच विश्वास की खाई को और चौड़ा कर दिया है। इस खाई को पाटने का एकमात्र तरीका है कि सरकार संवाद का रास्ता अपनाए, जनता को विश्वास में ले और व्यावहारिक समाधान निकाले। अगर सरकार दमन की नीति पर कायम रही तो हालात और बिगड़ सकते हैं। नेपाल का लोकतंत्र पहले ही कमजोर हालत में है, और अगर यह संकट लंबा खिंच गया तो यह देश को गहरे राजनीतिक और सामाजिक संकट में धकेल सकता है। नेपाल सरकार के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह हिंसा को रोके, जनता को विश्वास में ले और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो यह संकट नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे बड़ा संकट साबित हो सकता है।