Maharajganj: सिसवा की माटी में आज भी संजो कर रखी गई है क्रांति की ये निशानी

डीएन ब्यूरो

देश की स्वतंत्रता संग्राम में सिसवा के रणबांकुरों ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई थी। जिसका जीता जागता उदाहरण है ग्रामसभा सिसवा बुजुर्ग में स्थित सेनानियों की याद में बना स्मारक स्तम्भ। पढ़ें पूरी खबर..

क्रांति की दास्तां बयां करता स्मारक स्तम्भ
क्रांति की दास्तां बयां करता स्मारक स्तम्भ


महराजगंजः आजादी की लड़ाई में सिसवा क्षेत्र के खेसरारी गांव का गौरवशाली इतिहास रहा है। उस समय स्वतंत्रता संग्राम में अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाले प्रोफेसर शिब्बनलाल सक्सेना के नेतृत्व में सिसवा क्षेत्र के एक या दो नहीं बल्कि कई लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध मोर्चा खोल रखा था। 

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जिस पर साल 1930 में इन सेनानियों ने ब्रिटिश हुकूमत द्वारा वसूले जा रहे लगान का जमकर विरोध किया। इस पर इन सेनानियों से खार खाए अंग्रेजों ने सिसवा के सीमावर्ती गांव खेसरारी पर धावा बोल दिया। देखते ही देखते अंग्रेजों ने पूरे गांव को लूट लिया। इस दौरान सेनानियों ने जमकर संर्घा किया, लेकिन वे बुरी तरह घायल हो गए। 

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घायलावस्था में भी इन सेनानियों ने हिम्मत नहीं हारी और प्रो0 शिब्बनलाल सक्सेना के नेतृत्व में सेनानियों ने इसकी खबर महात्मा गांधी तक पहुंचा दिया। गांधी ने इस घटना को 1931 में इंग्लैण्ड में आयोजित गोलमेज कांन्फ्रेन्स में उठाया। परिणाम स्वरूप बाबा राघवदास के देखरेख में पांच सदस्यीय टीम का गठन किया गया। इस टीम ने लूटे गए सामानों को पुनः खेसरारी गांव में जाकर ग्रामीणों में वापस कराया।

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इन सेनानियों की याद में सिसवा बुजुर्ग स्थित राजकीय महिला चिकित्सालय के पास बनाया गया स्मारक स्तम्भ पहले तो उपेक्षित था, लेकिन जून 2017 में "पहल" नामक संस्था ने जीर्णोद्धार कराकर इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने का काम किया है।










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