पलामू में बनाए जाएंगे चीतलों के लिए ‘सॉफ्ट-रिलीज सेंटर’, जानें इसके फायदे

डीएन ब्यूरो

शिकारी जानवरों के लिए शिकार की उपलब्धता को बढ़ावा देने के प्रयास के तहत झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में चीतलों के लिए चार ‘सॉफ्ट-रिलीज सेंटर’ निर्माणाधीन हैं।

फाइल फोटो
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रांची: शिकारी जानवरों के लिए शिकार की उपलब्धता को बढ़ावा देने के प्रयास के तहत झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में चीतलों के लिए चार ‘सॉफ्ट-रिलीज सेंटर’ निर्माणाधीन हैं। एक वन अधिकारी ने यह जानकारी दी।

अधिकारी ने बताया कि पांचवां सेंटर कभी माओवादियों का गढ़ रहे बूढ़ा पहाड़ इलाके में स्थापित करने की प्रक्रिया में है। उन्होंने बताया कि चीतलों को अभयारण्य के बेतला क्षेत्र से ‘सॉफ्ट-रिलीज सेंटर’ में स्थानांतरित किया जाएगा और इस पहल से बाघों को पीटीआर में वापस लाने की उम्मीद है।

‘सॉफ्ट रिलीज सेंटर’ वे होते हैं जहां जानवरों को उस स्थान के करीब रखा जाता है, जहां उन्हें छोड़ा जाएगा।

तीन साल से अधिक समय के बाद मार्च 2023 में पीटीआर में एक बाघ देखा गया था। राज्य वन विभाग ने राज्य की राजधानी रांची से लगभग 150 किमी दूर लातेहार और गढ़वा जिलों से लगे बूढ़ा पहाड़ की तलहटी पर घास के मैदान विकसित करने और चेक डैम बनाने का भी निर्णय लिया है।

कुटकू रेंज में बूढ़ा पहाड़ की तलहटी लंबे समय से झारखंड और छत्तीसगढ़ के बीच बाघों का गलियारा रही है। एक अधिकारी ने बताया कि घास के मैदान के विकास और ‘सॉफ्ट-रिलीज सेंटर’ तथा चेक डैम के निर्माण से इस क्षेत्र में भविष्य में बाघों की आवाजाही की आवृत्ति बढ़ सकती है, जो छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान (जीजीएनपी) के करीब है।

उन्होंने कहा कि जीजीएनपी झारखंड और मध्य प्रदेश को जोड़ता है तथा मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ और झारखंड के पीटीआर के बीच बाघों को आने-जाने के लिए एक गलियारा प्रदान करता है।

पीटीआर (उत्तर) के उप निदेशक प्रजेश जेना ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया, ‘‘राष्ट्रीय बाघ रिजर्व प्राधिकरण (एनटीसीए) ने हमारे प्रस्तावों को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। हमने हाल में बूढ़ा पहाड़ की तलहटी में सॉफ्ट-रिलीज सेंटर, घास के मैदान के विकास और चेक डैम के लिए एनटीसीए को कोष की मांग सौंपी है।’’

उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र माओवादी गतिविधियों के लिए कुख्यात रहा है लेकिन बहुत जल्द इसे वन्यजीव केंद्र के रूप में जाना जाएगा।

झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा और महाराष्ट्र के शीर्ष माओवादी नेताओं द्वारा आश्रय स्थल के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले बूढ़ा पहाड़ को पिछले साल सितंबर में तीन दशकों से अधिक समय के बाद सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के नियंत्रण से मुक्त कराया था।

जेना ने कहा कि बूढ़ा पहाड़ में प्रस्तावित ‘सॉफ्ट-रिलीज सेंटर’ 10 से 15 हेक्टेयर में बनेगा, जबकि 20 हेक्टेयर में घास का मैदान विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में जंगली जानवरों के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए लगभग 15 चेक डैम बनाए जाएंगे।

पीटीआर के निदेशक कुमार आशुतोष ने बताया, ‘‘बाघों के प्रमुख शिकार में से एक चीतल मुख्य रूप से अभयारण्य के बेतला क्षेत्र में केंद्रित है। चीतल की संख्या 5,000 से अधिक होगी और इसे सॉफ्ट-रिलीज सेंटर के जरिए पूरे रिजर्व क्षेत्रों में फैलाने की जरूरत है। बेतला क्षेत्र से चीतलों को निश्चित संख्या में सॉफ्ट-रिलीज केंद्रों में स्थानांतरित किया जाएगा और बाद में उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाएगा।’’

झारखंड के पूर्व प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) प्रदीप कुमार ने 2016 में प्रकाशित अपनी किताब ‘मैं बाघ हूं’ में लिखा है कि 1974 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत स्थापित पीटीआर 1,129 वर्ग किमी में फैला है जहां वर्ष 1972 में 22 बाघ थे। किताब के मुताबिक 1995 में 71 बाघों की संख्या दर्ज की गई थी। इसके बाद, इनकी संख्या घटने लगी।

राज्य वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य डी एस श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘अभयारण्य में बाघों की घटती संख्या के लिए अवैध शिकार, मवेशी चराना और इंसानी गतिविधियां बढ़ना प्रमुख कारण हैं। वन विभाग को पहले इन कारकों को नियंत्रित करने पर ध्यान देना चाहिए। अशांत निवास स्थान में बाघों की संख्या नहीं बढ़ती है।’’

उन्होंने कहा कि पीटीआर प्राधिकरण ने 2017 में रांची के भगवान बिरसा जैविक उद्यान से 16 सांभरों को अभयारण्य के बारेसनर क्षेत्र में एक ‘सॉफ्ट-रिलीज सेंटर’ में स्थानांतरित कर दिया था। उन्होंने कहा, ‘‘पांच साल बाद भी सॉफ्ट-रिलीज सेंटर में न तो सांभर की संख्या बढ़ी और न ही किसी जानवर को इससे मुक्त किया गया। यह विफलता रही है।’’










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