Type-2 Diabetes : भारत में ‘टाइप-2’ मधुमेह के इलाज को लेकर वैज्ञानिकों ने किया ये बड़ा खुलासा, पढ़िये ये शोध रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

वैज्ञानिकों ने भारत और यूरोप में ‘टाइप-2’ मधुमेह के विभिन्न स्वरूपों में आनुवंशिक समानताएं और अंतर पाया है और उनका कहना है कि इसका उपयोग देश में इस रोग के उपचार को और बेहतर बनाने में किया जा सकता है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

टाइप-2’ मधुमेह पर नया शोध
टाइप-2’ मधुमेह पर नया शोध


नयी दिल्ली: वैज्ञानिकों ने भारत और यूरोप में ‘टाइप-2’ मधुमेह के विभिन्न स्वरूपों में आनुवंशिक समानताएं और अंतर पाया है और उनका कहना है कि इसका उपयोग देश में इस रोग के उपचार को और बेहतर बनाने में किया जा सकता है।

स्वीडन में शोधकर्ताओं ने पूर्व में यह प्रदर्शित किया था कि मधुमेह को पांच उप-समूहों में विभाजित किया जा सकता है और ‘टाइप-2’ मधुमेह से जुड़े चार उपसमूहों के बीच आनुवंशिक अंतर हैं।

यह नया अध्ययन ‘द लांसेट रिजनल हेल्थ-साउथईस्ट एशिया’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है, जिसमें यह पुष्टि की गई है कि वर्गीकरण प्रणाली पश्चिमी भारत में एक समूह पर लागू होती है।

स्वीडन के लुंड विश्वविद्यालय में जिनोमिक्स, मधुमेह और अंतःस्राविकी विषयों की सहायक प्राध्यापक रश्मि प्रसाद ने कहा, ‘‘अध्ययन भारत और यूरोप में टाइप-2 मधुमेह के विभिन्न स्वरूपों के बीच आनुवंशिक समानताओं तथा अंतर को रेखांकित करता है।’’

प्रसाद ने एक बयान में कहा, ‘‘हम इसे भारत में टाइप-2 मधुमेह के मामले बढ़ने को बेहतर तरीके से समझने की दिशा में एक उत्साहजनक नये कदम के रूप में देखते हैं।’’

नतीजे 2,217 रोगियों के क्लिनिकल आंकड़ों और पश्चिम भारत में टाइप-2 मधुमेह के 821 लोगों पर किये गये अध्ययन पर आधारित है।

प्रसाद ने कहा, ‘‘हम पूर्व के अपने इन निष्कर्षों की पुष्टि कर सके, जिनमें एक खास तरह का टाइप-2 मधुमेह पाया गया था और जो अपेक्षाकृत कम ‘बॉडी मास इंडेक्स’ वाले लोगों में दिखा था और यह भारत में मधुमेह का सबसे सामान्य प्रकार है।’’

शोधकर्ताओं ने कहा कि इस उपसमूह को इंसुलिन की अत्यधिक कमी वाले मधुमेह से ग्रसित रोगियों के रूप में जाना जाता है और यह टाइप-2 मधुमेह का एक स्वरूप है।

स्वीडन में आबादी पर किये गये पूर्ववर्ती अध्ययनों में यह प्रदर्शित हुआ था कि अधेड़ उम्र में होने वाला मधुमेह स्वीडिश लोगों में मधुमेह का सर्वाधिक समान्य रूप है।

प्रसाद ने कहा, ‘‘भारतीयों में कम आयु में अल्पपोषित रहना, टाइप-2 मधुमेह जल्द शुरू होने का एक बड़ा कारण हो सकता है और यही कारण हो सकता है कि हम स्वीडन और भारत के मरीजों के बीच यह अंतर देख रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस जानकारी का उपयोग भारत में मधुमेह की रोकथाम करने में किया जा सकता है, जहां विश्व में चीन के बाद सर्वाधिक संख्या में मधुमेह से ग्रसित लोग हैं। हमारे शोध में यह भी पाया गया कि भारतीयों में अल्पपोषण की रोकथाम भी टाइप-2 मधुमेह के प्रसार को रोक सकती है।

अध्ययन के मुताबिक, भारत में दूसरा सबसे बड़ा समूह मोटापे से जुड़े मधुमेह वाले रोगियों (एमओडी) का है। इस तरह के प्रतिभागियों वाले समूह में शामिल किये गये भारतीय प्रतिभागी विटामिन बी12 की कमी के लिए आनुवंशिक स्वरूपों से संबद्ध थे और यह स्वीडन के लोगों में नहीं देखा गया।

प्रसाद ने कहा, ‘‘हमारे अध्ययन में, यह भारतीय और स्वीडिश समूहों के बीच आनुवंशिक अंतर का एक रोचक उदाहरण है। इन नतीजों से यह पता चलता है कि दोनों क्षेत्रों की आबादी में रोग के कारण अलग-अलग हैं। विटामिन बी12 की कमी भारतीय एमओडी समूह में रोग का एक कारक हो सकता है।’’










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