शहीद भगत सिंह को पाकिस्तान ने पहली बार माना क्रांतिकारी, बदला चौक का नाम
पाकिस्तान के लाहौर में शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का 88वां शहीद दिवस आज मनाया जा रहा है। वहीं लाहौर प्रशासन ने पत्र जारी कर तीनों के नाम पर इस चौक के बदलने की बात कही है। डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट..
लाहौर: पाकिस्तान के लाहौर में शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का 88वां शहीद दिवस आज मनाया जा रहा है। वहीं लाहौर प्रशासन ने पत्र जारी कर तीनों के शहादत स्थल शादमान चौक को भगत सिंह चौक करने की बात कही है। प्रशासन के पत्र में भगत सिंह को क्रांतिकारी कहकर संबोधित किया गया है।
लाहौर के भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन इम्तियाज राशिद कुरैशी के द्वारा शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत स्थल पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। पाकिस्तान के कट्टर पंथियों ने इस पर कई बार नाराजगी भी जताई है। लेकिन राशिद शहादत दिवस पर प्रत्येक वर्ष कार्यक्रम आयोजित करते हैं। शहादत दिवस पर इस बार 88वां कार्यक्रम शनिवार शाम को होने जा रहा है। उन्होंने इसके लिए सुरक्षा व्यवस्था की प्रशासन से मांग की है।
कोर्ट के आदेश पर मिली सुरक्षा
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शहादत दिवस पर कार्यक्रम आयोजन के लिए आयोजक राशिद ने 19 मार्च 2019 को जिला न्यायालय लाहौर को सुरक्षा मुहैया करवाने की मांग की थी। कोर्ट ने अर्जी को मंजूरी देते हुए लाहौर के मेयर को सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त करने के निर्देश दिए हैं। वहीं कोर्ट की तरफ से जारी पत्र में शहादत स्थल को भगत सिंह चौक (शादमान चौक) लिखा गया है। यह पहला मौका है जब जिला प्रशासन ने भगत सिंह को क्रांतिकारी माना है। राशिद यह मांग लंबे समय से उठाते आ रहे हैं।
शहादत चौक पर लगेगी भगत सिंह की प्रतिमा
कार्यक्रम का आयोजन करने वाले राशिद के अनुसार हम चौक का नाम बदलने की मांग लंबे समय से करते आ रहे हैं। साथ ही इस चौक पर भगत सिंह की प्रतिमा लगाई जाए और उन्हें निशान-ए-हैदर के सम्मान ने नवाजा जाए।
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शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च को दी गई थी फांसी
लाहौर प्रशासन ने अब जिसे भगत सिंह चौक का नाम दिया है उसी जगह पर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को फांसी दी थी।
भगत सिंह का आखिरी खत
भगत सिंह ने फांसी से पहले अपने आखिरी खत में लिखा, साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैद होकर या पाबंद होकर न रहूं। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है। क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था। मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी। इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा। आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।