

उच्चतम न्यायालय में शिवसेना के दोनों धड़ों के बीच चल रही कानूनी लड़ाई के बीच महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल ने कहा है कि महज अविश्वास का नोटिस देकर कोई उन्हें उनके पद से नहीं हटा सकता। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
मुंबई: उच्चतम न्यायालय में शिवसेना के दोनों धड़ों के बीच चल रही कानूनी लड़ाई के बीच महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि जिरवाल ने कहा है कि महज अविश्वास का नोटिस देकर कोई उन्हें उनके पद से नहीं हटा सकता।
उन्होंने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया कि वह कैसे अध्यक्ष (भाजपा के राहुल नार्वेकर) के चुनाव की अध्यक्षता कर सकते हैं यदि यह नोटिस उन्हें उनके पद से हटाने के लिए काफी है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के जीरवाल ने नासिक में संवाददाताओं से कहा, ‘‘ मुझे कुर्सी (पद) से हटाने के लिए एक महज नोटिस काफी नहीं है। मुझे विधानसभा में सर्वसम्मति से चुना गया था, इसलिए मुझे विधानसभा ही (मेरे पद से) हटा सकती है। यदि मैं अविश्वास नोटिस के चलते विधानसभा की अध्यक्षता नहीं कर सकता , तो ऐसे कैसे हो सकता है कि मैं अध्यक्ष के चुनाव में पीठासीन अधिकारी रहूं।’’
वह उच्चतम न्यायालय में चल रही कार्यवाही के बारे में पूछे गये सवालों का जवाब दे रहे थे। पिछले साल शिवसेना में विभाजन के बाद उच्चतम न्यायालय में दायर की गयी याचिकाओं में अध्यक्ष की शक्तियों समेत कई मुद्दे उठाये गये हैं।
एकनाथ शिंदे के धड़े के विधायकों के मुताबिक ऐसे समय में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाले विरोधी गुट ने उन्हें अयोग्य करार देने की मांग की है जब उपाध्यक्ष जिरवाल को हटाने का नोटिस सदन के सामने लंबित है।
उच्चतम न्यायालय ने शिवसेना में विभाजन से जून, 2022 में उत्पन्न हुए राजनीतिक संकट से जुड़ी अर्जियां 2016 के नबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार के लिए सात सदस्यीय पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था।
सन् 2016 में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अरूणाचल प्रदेश के नबाम रेबिया प्रकरण पर फैसला करते हुए व्यवस्था दी थी कि विधानसभा अध्यक्ष विधायकों को अयोग्य ठहराने की अर्जी पर तब आगे नहीं बढ़ सकते जब उन्हें ही उनके पद से हटाने का नोटिस पहले से सदन के सामने लंबित हो।
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