मिजोरम में उड़ने वाली छिपकली की नयी प्रजाति का पता चला, जानिये इसकी खास बातें

वैज्ञानिकों ने मिजोरम में उड़ने वाली छिपकली की एक नयी प्रजाति का पता लगाया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

Updated : 14 June 2023, 5:38 PM IST
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नयी दिल्ली: वैज्ञानिकों ने मिजोरम में उड़ने वाली छिपकली की एक नयी प्रजाति का पता लगाया है।

यह छिपकली मिजोरम में पाई गई है, इसलिए इसका नाम राज्य के नाम पर ‘मिज़ोरम पैराशूट गेको’ या ‘गेको मिज़ोरामेन्सिस’ रखा गया है।

हालांकि, नयी प्रजातियों का एक नमूना 20 साल से अधिक समय पहले एकत्र किया गया था, लेकिन इसके रिश्तेदारों के बीच अंतर का अब मूल्यांकन किया गया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार संबंधित रिपोर्ट पत्रिका ‘सलामंद्रा’ में प्रकाशित हुई है जिसका सह-लेखन पीएचडी के छात्र जीशान मिर्जा ने किया है।

मिर्जा ने एक बयान में कहा, ‘‘अतीत में अधिकतर खोजों में पक्षियों और स्तनधारियों जैसे करिश्माई जीवों पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे सरीसृप प्रजातियों की खोज नहीं हुई है। इस क्षेत्र के मेरे अपने सर्वेक्षणों ने कई नयी प्रजातियों का खुलासा किया है, जिसमें सालाज़ार का पिट वाइपर भी शामिल है, जिसका नाम बच्चों की पसंदीदा फंतासी उपन्यास श्रृंखला हैरी पॉटर के एक पात्र के नाम पर रखा गया है।’’

उन्होंने कहा, 'घने जंगलों के कारण पूर्वोत्तर भारत के वन्यजीव उतने प्रसिद्ध नहीं हैं जितने कि हो सकते हैं। हालांकि हाल के घटनाक्रम ने पहुंच को खोल दिया है।'

माना जाता है कि गेकोस (छिपकलियां) जल्द से जल्द विकसित होने वाले ‘स्क्वामेट्स’ समूह में से एक हैं। इस समूह में सभी छिपकलियां, सांप और उनके करीबी रिश्तेदार शामिल हैं, जिनके पूर्वज सैकड़ों-लाखों साल पहले जीवाश्म रिकॉर्ड में पहली बार दिखाई दिए थे। शुरुआती ‘गेकोस’ ने 10 करोड़ साल पहले ही अपनी कुछ प्रमुख विशेषताओं को विकसित कर लिया था।

आनुवांशिक अध्ययन और संरक्षित अवशेषों से पता चलता है कि उन्होंने अपने पैरों पर चिपकने वाले पैड विकसित किए थे जो उन्हें सूक्ष्म बालों के नेटवर्क के उपयोग के माध्यम से लगभग किसी भी सतह पर चढ़ने की क्षमता प्रदान करते थे।

वैज्ञानिकों ने कहा कि अन्य अनुकूलन, जैसे शिकारियों को विचलित करने या अंधेरे में अच्छी तरह से देखने के लिए अपनी पूंछ को छोड़ने जैसी विशिष्टताओं ने उन्हें सबसे सफल छिपकली समूहों में से एक बनने में मदद की है।

उन्होंने कहा कि आज ‘गेको’ की 1,200 से अधिक प्रजातियां हैं, जो सभी ज्ञात छिपकलियों का लगभग पांचवां हिस्सा हैं।

उड़ने के लिए अपनी हड्डी का उपयोग करने वाले अन्य सरीसृपों के विपरीत उड़ने वाली संबंधित छिपकलियों की त्वचा में कंपन करने वाले तंतु होते हैं जिससे उन्हें उड़ने में मदद मिलती है।

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