मराठा आरक्षण का विरोध नहीं करते, लेकिन ओबीसी कोटे में कटौती नहीं होनी चाहिए: भुजबल
महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल ने शुक्रवार को दोहराया कि मराठों को आरक्षण देते समय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए मौजूदा आरक्षण में कटौती नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे के बयान को लेकर उनपर निशाना भी साधा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
छत्रपति संभाजीनगर: महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल ने शुक्रवार को दोहराया कि मराठों को आरक्षण देते समय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए मौजूदा आरक्षण में कटौती नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे के बयान को लेकर उनपर निशाना भी साधा।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार ओबीसी समुदायों की एक रैली में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता भुजबल ने पूछा कि अचानक मराठों को कुनबी जाति से संबंधित दिखाने वाले कई रिकॉर्ड कैसे मिल जा रहे हैं।
भुजबल और कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार, राजेश राठौड़, भाजपा के विधान परिषद सदस्य गोपीचंद पडलकर, प्रकाश शेंडगे और महादेव जानकर सहित कई अन्य प्रमुख ओबीसी नेता महाराष्ट्र के जालना जिले के अंबाद में 'ओबीसी भटके विमुक्त जात आरक्षण बचाओ यलगार सभा' (ओबीसी और खानाबदोश जनजातियों के आरक्षण को बचाने के लिए रैली) में शामिल हुए।
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यह कार्यक्रम अंतरवाली सरती गांव से 25 किलोमीटर दूर हुआ, जहां जरांगे ने मराठा आरक्षण की मांग के लिए पहले अगस्त में और फिर अक्टूबर में भूख हड़ताल शुरू की थी।
भुजबल ने कहा, “ओबीसी को संवैधानिक रूप से और उच्चतम न्यायालय की मंजूरी के बाद आरक्षण मिला। वह (जरांगे) कहते हैं कि हमने उनका (मराठा समुदाय का) 70 साल से आरक्षण छीन रखा है। क्या हम जरांगे के परिवार का कुछ छीन रहे हैं?”
उन्होंने कहा, 'हम मराठा आरक्षण का विरोध नहीं करते, लेकिन ओबीसी कोटे पर कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।'
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भुजबल ने यह भी सवाल किया कि मराठा परिवारों को ओबीसी समुदाय कुनबी जाति से संबंधित दिखाने वाले रिकॉर्ड अचानक कैसे सामने आ रहे हैं।
जरांगे की भूख हड़ताल के बाद, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने ओबीसी कोटा का लाभ प्रदान करने के लिए उन मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देने का फैसला किया, जो हैदराबाद में निजाम शासन के दौरान अपने पूर्वजों के कुनबी समुदाय से संबंधित होने के दस्तावेज दिखा सकते हों।
भुजबल ने कहा, 'शुरुआत में (1948 से पहले) निजाम के हैदराबाद राज्य का हिस्सा रहे मराठवाड़ा में 5,000 रिकॉर्ड पाए गए । बाद में यह संख्या 13,500 तक पहुंच गई...जब तेलंगाना में चुनाव हुए, तो यह संख्या और बढ़ गई।'