दुनिया की सबसे पुरानी राजशाही में नए सम्राट की ताजपोशी के गवाह बनेंगे कई गणमान्य, जानिये ये खास बातें

डीएन ब्यूरो

वह साल 2019 की एक सर्द सुबह थी जब सम्राट नारुहितो ने भारी बारिश के बीच जापान के शाही महल के मैदान में अमेतरासु (पौराणिक सूर्य देवी) के सामने अपनी ताजपोशी की घोषणा की। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

नजरबायेव विश्वविद्यालय
नजरबायेव विश्वविद्यालय


अस्ताना: वह साल 2019 की एक सर्द सुबह थी जब सम्राट नारुहितो ने भारी बारिश के बीच जापान के शाही महल के मैदान में अमेतरासु (पौराणिक सूर्य देवी) के सामने अपनी ताजपोशी की घोषणा की।

इसके बाद, वह महल के सबसे प्रतिष्ठित क्षेत्र ‘मात्सु-नो-मा’ पहुंचे, जहां जापान के नए सम्राट के रूप में उनका राज्याभिषेक किया गया।

दुनिया की सबसे पुरानी राजशाही में नए सम्राट की ताजपोशी की गवाह बनने के लिए विश्वभर की शाही हस्तियां और अन्य गणमान्य व्यक्ति जापान पहुंचे थे। इनमें ब्रिटेन के महाराजा चार्ल्स तृतीय (तब राजकुमार चार्ल्स) भी शामिल थे, जिन्हें इस सप्ताहांत आयोजित होने वाले तीन दिवसीय कार्यक्रम के दौरान आधिकारिक तौर पर ताज पहनाया जाएगा।

उनकी ताजपोशी में जापान के शाही घराने के प्रतिनिधि के रूप में क्राउन प्रिंस अकिशिनो शामिल होंगे, जो सम्राट नारुहितो के भाई हैं।

जापान और ब्रिटेन संवैधानिक राजशाही पर अमल करने वाले चुनिंदा देशों में शामिल हैं।

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मालूम हो कि संवैधानिक राजशाही एक ऐसी शासन-प्रणाली को कहते हैं, जिसमें महारानी या महाराजा राष्ट्र का सर्वोच्च शासक होता है, लेकिन उसकी शक्तियां किसी संविधान या कानून द्वारा सीमित होती हैं, यानी वह मनमानी हुकूमत नहीं चला सकता है।

लोकतंत्र में संवैधानिक सम्राट के पास भले ही कोई आधिकारिक शक्ति नहीं होती है, लेकिन विभिन्न अध्ययनों में देखा गया है कि वे (संवैधानिक सम्राट) अपनी लोकप्रियता के कारण जनता की राय को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।

जापान में सम्राट को एक दौर में व्यापक राजनीतिक शक्तियां हासिल थीं। लेकिन, द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद नवस्थापित लोकतांत्रिक संविधान में सम्राट के अधिकारों में भारी कटौती की गई, जिससे उनकी भूमिका राजनीतिक न रहकर, महज प्रतीकात्मक और रस्मी हो गई।

तब से, सम्राट को राजनीतिक संदेश देने की अनुमति नहीं है, न ही उसके पास मतदान का अधिकार है।

हालांकि, 2018 में राष्ट्रीय स्तर पर की गई एक रायशुमारी में पता चला कि जापान में 75 फीसदी से अधिक लोगों के मन में सम्राट के प्रति अभी भी सकारात्मक भावनाएं और सम्मान है।

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सर्वे में एक भी प्रतिभागी ने यह नहीं कहा कि उसके मन में सम्राट के लिए नकारात्मक भावनाएं हैं। 22 फीसदी प्रतिभागियों ने हालांकि उनके लिए ‘कोई भी भावना न होने’ की बात कही।

वहीं, 2020 में हुए एक सर्वे से सामने आया कि जापान के सम्राट में अब भी राष्ट्रीय राजनीति पर लोगों की राय को प्रभावित करने की क्षमता है।

हालांकि, यह प्रभाव व्यापक नहीं हो सकता है, लेकिन जापान के वासेदा विश्वविद्यालय और कजाकिस्तान के नजरबायेव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन दर्शाता है कि सम्राट सभी विचारधारा के लोगों को उनकी राजनीतिक मान्यताओं से परे प्रभावित कर सकते हैं।










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