DN Exclusive महराजगंज: सरकारी धन की बंदरबांट जोरों पर, कागजों में चल रही गोशाला, सड़कों पर लाठियां खा रहे गोवंश

डीएन संवाददाता

गोवंशों की देखरेख के नाम पर सरकार द्वारा हर साल लाखों रूपये खर्च किये जाते हैं, जिसका अधिकांश हिस्सा गोशाला के नाम पर खर्च होता है। आलम यह है कि गोवंश सड़कों पर लाठियां खा रही है और गोशाला केवल कागजों में संचालित हो रही है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज की पूरी रिपोर्ट

पशुओं की देखरेख के मामले में फरेंदा तहसील का बुरा हाल
पशुओं की देखरेख के मामले में फरेंदा तहसील का बुरा हाल


फरेंदा (महराजगंज): कहने को तो सरकार गोवंशों की देखरेख के लिये हर साल लाखों रूपयों की योजनाएं चलाती है लेकिन योजनाओं के क्रियान्वयन में जुटे जिम्मेदारों की बदनीयत के कारण योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। यही कारण है कि क्षेत्र की कई गोशालाएं केवल कागजों में ही चल रही है और गोवंश सड़कों पर लाठी खा रहे हैं।  

शासन की प्राथमिकता में शामिल गोवंशीय पशुओं की देखरेख के मामले में फरेंदा तहसील क्षेत्र का बुरा हाल है। यहां कागजों में गोशाला चल रही है। गोशलाओं  पर ताला लगा है। सड़कों पर सैकड़ों की संख्या में गोवंश लाठियां खाने को मजबूर है। लेकिन जिम्मेदारों की निद्रा टूटने का नाम नहीं ले रही है। वही इन पशुओं की धमाचौकड़ी से राहगीर आए दिन सड़कों पर घायल हो रहे हैं। 

फरेंदा विकास खंड के ग्राम सभा मधुकरपुर महदेवा व झामट में सार्वजनिक पशु आश्रय का निर्माण कराया गया है। जहां मौके पर एक भी पशु नहीं हैं। पशु आश्रय निर्माण पूरी तरह से हवा हवाई है। जिम्मेदारों द्वारा निर्माण के नाम पर सरकारी धन का बंदरबाट किया गया है।

डाइनामाइट न्यूज की पड़ताल में जो जानकारी सामने आयी, वे चौकाने वाली है। गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत तीन लाख 72 हजार दो सौ पंद्रह रुपये की लागत से सार्वजनिक पशु आश्रय व मुख्य प्रवेश द्वार का निर्माण, तीन लाख 83 हजार सात सौ आठ रुपये की लागत से चारागाह, गौचर भूमि पर चारों तरफ सुरक्षा खाई एवं बंधा निर्माण, एक लाख 81 हजार छह सौ सैंतालिस रुपये की लागत से चारागाह की भूमि पर पोखरे की खोदाई का कार्य किया गया है। लेकिन इन निर्माण कार्य में मानकों की अनदेखी की गई है।

डाइनामाइट न्यूज को पता चला कि इन कार्यों को पूरा करने के लिए नौ लाख 37 हजार पांच सौ सत्तर रुपये खर्च हुए हैं। इतना अधिक सरकारी धन खर्च होने के बाद भी पशु आश्रय में एक भी जानवर नही हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना को जिम्मेदारों ने पलीता लगा दिया है। सरकारी धन बेसहारा जानवरों को तो काम नहीं आई, लेकिन जिम्मेदारों ने इसके आड़ में खूब मलाई काटी है। 

झामट में बने इस आश्रय का हाल बहुत बुरा है। लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी बेसहारा पशुओं को सहारा नहीं मिल पा रहा है। सरकार द्वारा जहां बेसहारा पशुओं को आश्रय देने के लिए गो आश्रय का निर्माण कराया गया, लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही से इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। 










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