पत्नी को गुजारा राशि देने पर मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

डीएन ब्यूरो

वर्तमान समाज-व्यवस्था में महिला अधिकारों के संरक्षण और उसे व्यवहारिक रूप को लेकर चर्चा होती रहती है। इन सबके बीच भी समाज-परिवार में पुरुषों की एक जिम्मेदारी है और उसका बचाव किया जाना जरूरी है। मद्रास हाईकोर्ट ने इस बारे में एक बड़ा फैसला दिया है।

ऑर्डर-ऑर्डर
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चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण  फैसले में कहा कि एक पुरुष किसी का पति होने के साथ-साथ अपने माता-पिता का भी संतान होता है। हाईकोर्ट ने कहा कि पुरुषों (पतियों) की भी कुछ जिम्मेदारी और अधिकार हैं। हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालयों (फैमिली कोर्ट) से पतियों के प्रति थोड़ी नरमी बरतने को कहा है। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा है कि पतियों को कोई मशीन न समझा जाये और इस बात को ध्यान में रखते हुए ही पत्नी को गुजारे की राशि देने का आदेश दिया जाए। 

 जस्टिस आरएमटी टीकारमन ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि, फैमिली कोर्ट इस तथ्य को नज़रअंदाज़ न करे कि एक पुरुष पति होने के साथ-साथ अपने माता-पिता का भी संतान होता है। उसे मां-बाप का भी ख्याल रखना होता है। फैमिली कोर्ट ने 10,500 रुपये महीना कमाने वाले एक व्यक्ति को 7,000 रुपये अपनी पत्नी को गुजारा खर्च के रूप में देने का आदेश दिया था।

हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट से कहा कि इतनी कम कमाई में से 7000 रुपये पत्नी को देने के बाद बचे 3500 रुपयों में अपना और अपने बूढ़े माता-पिता का खर्च कोई कैसे चला सकता है? जज ने कहा, पत्नी और बच्चे के लिए गुजारा खर्च की राशि को तय करते समय कोर्ट को पुरुष की बाकी जिम्मेदारियों को भी ध्यान में रखना चाहिए।' जज ने कहा कि इस तरह के गुजारा खर्च के आदेश की निंदा की जानी चाहिए।

वर्द्धराजन की शादी फरवरी 2001 में हुई थी। वर्द्धराजन की पत्नी ने पति पर बेटी और खुद के नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर गुजारा खर्च की मांग की थी। फैमिली कोर्ट ने साढ़े 10 हजार प्रतिमाह की कमाई में से वर्द्धराजन को 7 हजार रुपए प्रतिमाह देने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट ने इसी पर उक्त फैमला दिया। 










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