वाह रे.. सरकारी माया! 27 करोड़ के सड़क निर्माण घोटाले में कंसल्टेंसी फर्म को नापा लेकिन 'डकैत' इंजीनियरों को छोड़ा, चर्चाओं का बाजार गर्म

डीएन संवाददाता

महराजगंज जिले के रामनगर से सिसवा बाबू तक के NH-730 सड़क के निर्माण मामले में 'डकैत' इंजीनियरों ने बड़ा खेल किया है और 27 करोड़ के घपले-घोटाले मामले में 'डकैत' इंजीनियरों को सीधे-सीधे बचा लेने की पटकथा जांच कर्ताओं द्वारा लिख डाली गयी है। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:

NH 730 (फाइल फोटो)
NH 730 (फाइल फोटो)


महराजगंज: रामनगर से सिसवा बाबू तक के NH-730 सड़क निर्माण के लिए  'डकैत' इंजीनियरों ने बड़ा फर्जीवाड़ा करते हुए 21.12 किलोमीटर लंबी सड़क निर्माण के लिए 206.12 करोड़ रुपये का डिटेल्स प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) केन्द्र सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को भेज दिया। 

हैरानी की बात यह है कि झांसे में आकर केन्द्र सरकार ने 21.12 किमी लंबी सड़क के लिए 185.18 करोड़ रुपये स्वीकृत भी कर दिये। यही नहीं धन की स्वीकृति के बाद टेंडर भी जारी कर दिया गया। 

इसी बीच डाइनामाइट न्यूज़ ने इस बड़े फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ किया कि मौके पर रामनगर से सिसवा बाबू तक के NH-730 सड़क की लंबाई 21.12 है ही नहीं। वास्तव में इस दूरी की लंबाई 18.39 किमी ही है।

डाइनामाइट न्यूज़ पर इस खबर के प्रकाशन के बाद कई जिम्मेदारों ने पिछले साल जून और जुलाई में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी से लेकर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और प्रमुख सचिव PWD नितिन रमेश गोकर्ण तक इस बड़े फर्जीवाड़े की शिकायत की कि कैसे NH-730 के 'डकैत' इंजीनियरों ने फर्जीवाड़ा करके इस्टीमेट में 2.73 किलोमीटर लंबी सड़क दिखा दी और सड़क की लागत 26.94 करोड़ बढ़ा कर योजना स्वीकृत करा ली।

बिना सड़क निर्माण के 27 करोड़ के इस भयानक लूट की शिकायत की जांच के बाद कार्यवाही की जो खबर डाइनामाइट न्यूज़ को लगी है, वह और भी हैरान करने वाली है। 

जांच के नाम पर भयानक खेल किया गया और डीपीआर तैयार करने वाली कंसल्टेंसी फर्म चैतन्या कंसल्टेंसी प्राइवेट लिमिटेड को जांच में दोषी माना गया और उस पर दस फीसदी यानि 2.7 करोड़ रुपये की पेनाल्टी लगाने का आदेश दिया गया।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या 27 करोड़ रुपये की लूट यह भारी भरकम रकम इस फर्म के जेब में जाती? जाहिर सी बात है नहीं, तो फिर क्यों अकेले इस फर्म को दोषी माना गया? क्या अकेले यही फर्म A टू Z तक सारे फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार है? क्या  'डकैत' इंजीनियरों ने कहीं पर कोई हस्ताक्षर नहीं किये? क्या इन  'डकैत' इंजीनियरों की कोई भूमिका नहीं है? 

यदि है तो फिर क्यों इनको बचाया जा रहा है? क्यों नहीं इन  'डकैत' इंजीनियरों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कराकर इन्हें सस्पेंड किया जा रहा है और जेल भेजा जा रहा है? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करने वाली डबल इंजन की सरकार के रहनुमाओं से जनता जानना चाहती है। 










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