Batla House Encounter Case: दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला,आरिज खान की फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2008 के बटला हाउस मुठभेड़ मामले में दोषी करार दिये गये आरिज खान को सुनाई गयी फांसी की सजा को बृहस्पतिवार को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट
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नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2008 के बटला हाउस मुठभेड़ मामले में दोषी करार दिये गये आरिज खान को सुनाई गयी फांसी की सजा को बृहस्पतिवार को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। बटला हाउस मुठभेड़ के दौरान दिल्ली पुलिस के निरीक्षक मोहन चंद शर्मा मारे गये थे।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने निचली अदालत के एक आदेश को बरकरार रखा जिसमें खान को पुलिस अधिकारी की हत्या का दोषी ठहराया गया था लेकिन अदालत ने मृत्युदंड को कायम रखने से इनकार कर दिया।

अदालत के आदेश की विस्तृत प्रति का इंतजार है।

अगस्त महीने में दोषी और राज्य के वकीलों ने अपनी दलीलें समाप्त की थीं, जिसके बाद पीठ ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

दिल्ली पुलिस की विशेष इकाई के अधिकारी शर्मा 19 सितंबर, 2008 को दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर में पुलिस और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ में मारे गए थे। राष्ट्रीय राजधानी में पांच सिलसिलेवार बम विस्फोटों के कुछ दिन बाद हुई मुठभेड़ में दो आतंकवादी भी मारे गए थे। विस्फोटों में 39 लोगों की मौत हो गयी थी और 159 लोग घायल हो गये थे।

शर्मा ने विस्फोटों के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों की तलाश में इस इलाके में छापा मारा था।

निचली अदालत ने आठ मार्च, 2021 को खान को दोषी ठहराया था और कहा था कि यह विधिवत साबित हो गया कि उसने और उसके सहयोगियों ने पुलिस अधिकारी की हत्या की। उसने कहा कि खान का अपराध ‘दुर्लभ से दुर्लभतम की श्रेणी’ में आता है जिसमें अधिकतम सजा दी जानी चाहिए जो ‘मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाना’ है।

उसने 15 मार्च, 2021 को खान को मौत की सजा सुनाई और उस पर 11 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने साफ किया कि 10 लाख रुपये तत्काल शर्मा के परिवार के सदस्यों को दिये जाने चाहिए।

इसके बाद खान को सुनाई गयी मौत की सजा के मामले को पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय में भेजा गया।

जब कोई निचली अदालत किसी व्यक्ति को मृत्यु की सजा सुनाती है तो उच्च न्यायालय फैसले का अध्ययन करता है और अपराधी को फांसी देने से पहले सजा की पुष्टि उसे करनी होती है।










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